Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 50
________________ San Mahaian Amhara Kenda Acharya Sh Kalassagan Gyan and पये, खुपदेशममोघमदत्त गुरुः ॥ ३८॥ (उपजातिः)-इतोऽगमत्सूरतमण्डलं सका, पथि त्रयाणामथ साधुदीक्षाम् । अदात्तदानी कमलागलाच-नाम्नी सुशीला सुरताऽधिवासा ॥ ३९॥ नाम्ना बुहारीनगरीमपेतं, विज्ञापयामास गरुं गरिमा वित प्तिमस्या अभिमत्य पूरि-स्ततो व्यहात्सिह शिष्यवृन्दैः ॥ ४०॥ ततोऽष्टकग्राममुपाजगाम, चक्रे प्रवेशोत्सवमस्य पौरः । अधौष नाश भवराशिवारं, धर्मोपदेशं कृतवानुदारम् ॥ ४१ ॥ अगानतः सातमपत्तनं च, महामहेनास्य पुरप्रवेशः । अकारि संधैरथ सूरिराजो, महोपदेशं ददिवानपूर्वम् ।।४२।। ( मालती)-कडसलियानगरं जगाम वै, परमकृपालुरशेषपापहा । अदित सुपदि देशनामसौ, गुणिगणगण्यजनाऽग्रणीगुरुः ॥४३।। (उपजातिः)-श्रीमद्गुरूणामुपदेशधारा-प्रभावयोगादिह धर्मवृद्धिः। जाता प्रशस्या जनताऽप्यशेषा, सम्यक्त्वमाप्ता गुरुदेवभक्ताः ॥ ४४ ॥ पुर्या बुहार्याः कियदग्यलोका, आगत्य विज्ञप्तिमिह प्रचक्रुः । स्वीकृत्य तामेप ततो विहस्य, पुरी बुहारीमयमाजगाम ।। ४५ ॥ सदुन्दुभिध्वान-विशिष्टबेण्ड-शवाऽऽदिनादैर्महमुज्वलं हि । विरच्य संघो गुरुमानिनाय, सुसञ्जितं पौरमुपाश्रयं तम् ॥ ४६ ।। (दुतविलंबितम)-निरतिचारसुसंयमपालको, भवगदौषधमच्युतलोकदम् । अमृततुल्यगिरा द्रुतबोधिदं, युपदिदेश समागतसद्गुरुः ।। ४७ ।। (उपजाति)-त्रिभूमिकश्रीप्रभुवासुपूज्य-सौधालये शीतलनाथकाऽऽदे। विम्बत्रयं सा कमला सुशीला, प्रतिष्ठिपच्छ्रीगुरुणाऽमुना हि ॥ ४८ ।। (शिखरिणी)-अभूच्छान्तिस्त्रात्रं कृतविविधपापक्षयकर, धियः कीर्तेलक्ष्मयाः सदनमतिरम्य सुविधिना । प्रदायि थीमुक्तरनघगुरुवर्यस्य कृपया, ह्यविमं सम्पेदे सकलमिह कृत्यं सुविदुषः ॥ ४९ ॥ (उपजातिः) बाजीपुरायामयमेकपुंसः, संसारपाथोनिधिसन्तितीपोंः। संवेगिनोऽत्यन्तविरक्तिभाजः, प्रादत्त दीक्षां करुणैकसिन्धुः ॥ ५० ॥ श्रीसक्यवा For Private And Personal Use Only

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