Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 55
________________ SinMahavirjan.AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharys su kalis Gyanmar तृतीयः सगे। श्रीजिनकृपाचन्द्र सरिचरित्रम् ॥७७॥ तत एष विहृत्य सुधीरगमत् । अतिभावुकसंघकृतै रुचिरैः, सुमहैरविशनगरी मुनिराद् ॥१०१॥ अतिमञ्जुलमत्र गुरुर्ददिवा- नुपदेशमपूर्वमघौघहरम् । भवबन्धनकुन्तनकारितरं, बविनाशि-सुखाऽच्युतलोकगमम् ॥ १०२ ॥ ( उपजातिः)-सुकर्मदीपत्तनमाजगाम, श्रीसंघजातोत्सवमीक्षमाणः । पुराऽन्तराविक्षदनल्पतेजा, गम्भीरवाण्या समुपादिशत्सः ॥१०३ ॥ श्रुत्वोपदेशं सुगुरोरपूर्व, जहुः कियन्तो लशुनाद्यभक्ष्यम् । दाढ्य स्वधर्म बहवः समीयु-रभिग्रह केऽपि ललुः समुत्काः ॥१०४॥ प्रभावना-पूजन-सत्तपांसि, नानाप्रकाराणि बभूवुरत्र । इत्थं स भव्यानुपकृत्य मरी-श्वरो व्यहार्षीदतुलप्रभावः ॥ १०५ ।। (तोटकम् )---अधिमालवरत्नललामपुरं, स हि शुक्र-गणेशतिथावसिते । समियाय सुशिष्यदलैः सहित-स्तपसां महसाऽधिकदीप्तिधरः ॥ १०६ ॥ (शार्दूलविक्रीडितम् )--पुर्याः सीम्नि समागतस्य सुगुरोरेतस्य सूरीशितु-रागत्याऽभिमुख महर्द्धिजनता सद्वेण्डभेर्यादिभिः । चन्द्राऽऽशङ्कितडिच्छटाधरमुखीसुश्राविकागानकै-रानिन्ये नगराऽन्तरेनमघदं सत्पूज्यपादाऽम्बुजम् ॥ १०७ ।। ( वसन्ततिलका )-सत्तोरणाऽऽदिपरिबन्धनशोभमाने, प्रत्यापणे नृपपथे च महेभ्यवगैः । पोपूज्यमानगुरुराजममुं प्रद्रष्टु-मावालवृद्धजनतापरिमदे आसीत् ।। १०८॥ अत्याग्रहाद्भविकसंघजनस्य तत्र, भूभृत्तुरङ्ग-नव-चन्द्रमिते च वर्षे । वषेतुवासमकरोत्सह भूरिशिष्यैः, श्रीमानचिन्त्यमहिमा गुरुराज एपः॥ १०९ ॥ (द्रुतविलंबितम् )-भगवतीमिह सूत्रमवीवचत् , जलधरस्वनजेगिरा गुरुः। वृजिनराशि-निराकृतिकारक, परमभक्तिपारंश्रुतमाङ्गनाम् ॥ ११०।। सदुपधानमहातप आदरान, भविकवृन्द इहाऽकृत भावका त्रिपुरुषा ललनाद्वितयी गरोः, शुभ- IN करेण ललुश्च महाव्रतम् ।। १११॥ (भुजङ्गप्रयातम् )-चतुर्मासपूतौ ततः संविहृत्य, जिनाऽऽदिः कृपाचन्द्रसूरीश्वरोऽयम् । KAR ॥७७॥ For Private And Personal use only

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