Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 23
________________ San Maharan Archana Kendra Achera Sa nta प्रथमः सर्गः। श्रीजिनकपाचन्द्र सरिचरित्रम् गरिष्ठे । तदीय-तत्पढ़-नियन्तृतैवं, त्वय्येव जाता जगदेकजिष्णो! ॥१६२॥(वैतालीयम्)-मालवीय-जावरापुरे, पिप्पलकखरतरीय-शाखिकः । समजनि जिनचन्द्रसरिको, जिनोदयसरिरास्त तत्पदे ॥१६३ ॥ (उपजातिः)-महात्मनाऽनेन सुबुदिनाऽपि, समुज्झिताऽशेष-परिग्रहेण । वेदाऽव-नन्देन्दुमिते च वर्षे, क्रियोवृतिं स्वं समचीकरब ।। १६४ ॥ अतस्त्वमेवाऽसि तदीयपट्ट-प्रधाननेता जगदुज्ज्वलाऽऽभ!। जिनाऽऽदिकीर्तेर्वरसूरिकस्य, बस्त्येव पट्टाऽधिकतिस्त्वयीश ॥१६५॥ इत्थं चतुम्शाखिक-पट्टकीयाss-चार्यत्वमापद्य बरीवृतीपि । महीयसस्तेऽतुलतेजसोऽस्माद्, गायन्ति धीराचरितं खुदारम् ॥ १६६ ।। मत्पूर्वजो गौरवबन्धुरासीद्, विद्वत्तमानां धुरि कीर्तनीयः । विभूषणः सञ्जनपुङ्गवाना-मानन्दनामा महिमाउम्पुराशिः ।। १६७॥ नेत्राब्धि-नन्द-क्षितिहायनेऽसौ, प्रादुर्बभूवात-धरौक-चन्द्रे । बर्षे तपस्ये शुभवासरेऽस्य, जाता सुदीक्षा महता महेन ।। १६८ ॥ नमस्तुरङ्गाङ्क-शशाङ्कवर्षे, चैत्रेऽसिते तिथौ च शुक्रे । ख्यातो मराले नगरे समाधि-ना घेतसि श्रीपरमेष्ठिपश्च ॥ १६९ ॥ स्मरबजलं वरमुक्तिदाय, सीमन्धर-वामि-पदारविन्दम् । ध्यायछुमध्यानमना मनीषी, सुरेशपुर्या गतवाननंहाः ॥ १७० ॥ (युग्मम् ) गार्हस्थ्यवासे दशपश्चवर्षी, सुसंयमित्वेऽपि च तावतीं सः। सम्पूर्णमायुर्गुणबिन्दुमब्द, भुक्त्वा सहस्राक्षपुरी जगाम ॥ १७१॥ राजन्यवंशीय-सुवत्सगोत्र-श्रीखूमसिंहात्पडिहारगोत्रा। श्रीअमृताख्या जनयाञ्चकार, गुणाऽब्धि-नन्देन्दुमिते चे वर्षे ॥ १७२ ॥ शुभाभिधानं युगराजमासीत् , नक्षत्रमासीदमिजित्प्रधानम् । बभूव राशिर्मकरस्तदानी-मित्थं सुवंशे जनितोऽस्म्यहं हि ॥१७३॥ माईस्थ्यवासे दशपञ्चवर्षी, सुसंयमित्वेऽपि च तावतीं सः । सम्पूर्णमायुर्गुणबिन्दुवर्ष, भुक्त्वा सहस्राक्षपुरी जगाम ॥ १७४ ॥ राजन्यवंशीय-सुबत्सगोत्र-श्रीखूमर्सिहात् ॥६१॥ For Private And Personal Use Only

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