Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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SinMahavir.jan AradhanaKendra
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पडिहारगोत्रा । अजीजनच्छीअमृता सुपुत्रं, गुणाऽब्धि-नन्देन्दुमिते च वर्षे ॥ १७५ ।। गार्हस्थ्यसंज्ञा युगराज आसी-बक्षत्रमासीदभिजित्प्रधानम् । बभूव राशिर्मकरच सोऽहं, जातः सुधांशाविव शुद्धवंशे ॥ १७६ ॥ पाण्यम्बुजाच्छीजिनकीर्तिसूरेस्तकेंषु-रन्ध-क्षितितुल्यवर्षे । सुदीक्षितस्तर्क-हृयाऽईचेंन्द्रे-ऽलमे युपाध्यायपदं किलाहम् ॥ १७७॥
(शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् )-वर्षे व्योम-नैवाऽङ्कचन्द्रगणिते श्रीपादलिप्ते पुरे, मासे फाल्गुनिके सिते रविदिने चक्षुःश्रवःसत्तियौ । चन्द्रे मीनगते शुमेहि शुभदे मेषे नवांशे भृगोः, श्रीमच्छीजिनकीर्तिमरिगुरुभिः प्रादायि मूरेः पदम् ।। १७८ ॥ | चन्द्रागार-विशाल-सर्वजनताचेतोहरे सुन्दरे, द्वैतीये वरभूमिके विरचितायां गोष्ठिकायां मुदा । श्रीसङ्घर्चहुसज्जनैश्च विबुधै
रामण्डितायां भृशं, श्रीमत्सूरिपदप्रदानमभवद्भर्युत्सवैर्मामकम् ॥ १७९ ॥ ( मालतीवृत्तम् )-जिनजयसागरसूरिनाम | मे, प्रथितमनेन गुणाऽम्बुराशिना । सकल-महाजन-पूजिताऽङ्किणा, सजिनकृपायुतचन्द्रसूरिणा ।। १८०॥
(शार्दूलविक्रीडितम् )-इत्याचार्यशिरोमणेर्जिनकृपाचन्द्रस्य सूरीशितुः, सूरिश्रीजयसागरेण मयका रम्ये चरित्रे गुरोः । सत्पधैरतिमन्जुलैर्विरचिते मोदप्रदे धीमता, सन्तानोद्भवकीर्तनोज्वलतरः सर्गोऽयमाद्योऽभवत् ।। १८१ ।।
FARREARRIERA5364
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