Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 39
________________ San Mahavia Ardhana Kenda www.kobatirtm.org Acharys su kalis Gyanmar द्वितीया सर्गः। श्रीजिनकृपाचन्द्र- सूरिचरित्रम् ॥६९।। पौरैरधिकोत्सवेन स, रामर्तु-रन्ध्र-क्षितिमानवत्सरे ॥ १५०॥ चक्रे चतुर्मासमिहाऽऽग्रहानुणां, प्राशिश्रवत्प्रज्ञपनाऽऽख्यसूत्रकम् । तच्छ्रोतुमाजग्मुरसंख्यका जना, धर्मप्रवृद्धिमहती बजायत ॥ १५१ ।। अनूपदेशे भिदडाऽभिधानं, पुरं जगामैष | सहाऽऽत्मशिष्यः । वितत्य भूयुत्सवमेतमेनं, प्रवेशयामास समस्तपौरः ॥ १५२ ।। श्रीमन्तमागृह्य समस्तसंघा, समुद्र-तर्कग्रह-भूमिवर्षे । अतिष्ठिपत्प्रावृषि संनिवस्तु, प्रौढप्रतापात्तपनायमानम् ॥ १५३ ।। (द्रुतविलंबितम् )-भगवतीवरसूत्रमशुश्रव-दगणिताऽऽगत सञ्जनमण्डलीम् । प्रमुदमाप निशम्य जनोऽखिलो, गुरुममुं प्रशशंस दिवानिशम् ॥ १५४ ॥ (उपजाति: )-कच्छीयमञ्जारपुरं ततोऽसौ, पनीपदामास विशालबुद्धिः। बेण्डाऽऽदिवाद्यैर्महिमानमस्य, गायश्च पौर: पुरमानिनाय ।। १५५ ।। अत्याग्रहाद्भूत-रसाङ्कपृथ्वी-प्रमाणवर्षे चतुरश्च मासान् । तस्थौ च तस्मिन् सह शिष्यजातैः, स उत्तराऽऽद्यध्यनं जगाद ।।१५६।। (द्रुतविलंधितम् )-अभवदेषु पुरेष्वपि पश्चसु, प्रतिसमं युपधानमहातपः। क्रमिकमस्य गुरोरुपदेशतो, विविधजन्मकृताऽध-विघातकम् ।। १५७ ।। (जलोद्वतगतिः )-अगाच्च सुथरीपुरीमभयदः, सतां प्रभुमुदीक्ष्य नष्टकलुपः । असावनलसन्निभः सुतपसा, प्रबोध्य जनता(ता) ततो विहृतवान् ॥१५८।। (उपजातिः)-घृताऽऽदिकल्लोलसुतीर्थमागात् , प्रैक्षिष्ट तीर्थेशमुदारभक्या । ततो जखाऊनगरीमुपेत्य, व्यालोकताऽसौ जिनराजबिम्बम् ॥ १५९ ।। ततो नलीयापुरमाययौ हि, तत्रस्थतीर्थेशमपश्यदेषः। विहृत्य तस्मादयमाजगाम, तेरापुरी तीर्थपति ननाम ॥ १६० । कोठारपुर्यादिकभूरितीथे--यात्रां प्रकुर्वन् दश साधुसाध्वीः । प्रदीक्षयामास जगद्धितषी, देशे बनूपे बिहरनजस्रम् ॥ १६१॥ (शार्दूलविक्रीडितम्)--वर्षे बाण-रसाऽङ्कचन्द्रतुलिते कच्छीयसन्माण्डवी-वासि-श्रेष्ठिगणाऽग्रगण्य-बजपालाङ्गप्रजन्मा ॥६९॥ For Private And Personal use only

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