Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 20
________________ SAMMahavir.JanAradhanaKendra www.kobairtm.org Acharya Sh Kaila n Gyan X + 6 श्रीपुण्य-धीराऽऽख्यगणी सुवक्ता, स्वाम्नाय शुद्धाऽऽचरण प्रतिष्ठः । बादि-प्रकाण्ड-द्विरदेषु सिंहः, पापौघ-भूभृच्छतकोटिकल्पः ॥ १२९ ।। (युग्मम् ) श्रीज्ञानकीर्तिगणभृत्तदीयो-पाध्यायभागुजबलकीर्तिशाली । विद्वदरिष्ठ: सुजनाऽब्जभानु:, प्रभावकोऽभूजनतानुतातिः ॥ १३० ।। गुणप्रमोदोऽभवदस्य शिष्यो-पाध्याय एप प्रततान कीर्तिम् । सर्वासु दिक्षु प्रभयोपपनो, विद्याविवादे विजयी सभायाम् ॥ १३१ ।। छात्रस्तदीयः समयाऽऽदिकीर्ति-रभूदुपाध्यायगणी यशस्वी । विद्वत्प्रकाण्डो गुणिवर्यगण्या, सुरक्षिताऽखण्डित-शीलशाली ॥ १३२ ॥ श्रीहर्षकल्लोलगणी बभूवो-पाध्यायतत्पाद-सरोज-भृङ्गः । समिद्धतेजाः करुणाऽऽर्द्रचेता, आदर्शभूतो जगदहणाऽर्हः ॥ १३३ ।। (आर्या )-शिष्यश्चाऽस्य विनीतः, श्रीमान् गणी विनयकालोलाऽऽसया । उपाध्यायपदयुक्तो, जातः स्वपर-समयनिष्णातः ॥ १३४ ।। (आण्यानकी)-तदीयशिष्यः समभूदुपाध्या-या कीर्तिशाली प्रभयोऽशुमाली । श्रीचन्द्रकीर्तिगणभृत्कृपालु, सद्भक्तचित्ताऽम्घुज-पनवन्धुः॥ १३५॥ (उपजाति:)-अमुष्य शिष्यो गुणकीर्तिरासीत्, गणी सुविद्वान् गुणरत्नसिन्धुः। स्वानाय-सैद्धान्तिक-वेद-वित्तोपाध्यायमुरुयो जनता-शुभंयुः ॥१३६ ॥ (द्रुतविलम्बितम् )-सुमतिरङ्गगणी समजायत, प्रवरवाचक उत्तमशीलपः। गुरुवरस्य हि तस्य सुशिष्यका, सुमतिदायक इज्यवरः प्रभुः ॥ १३७ ॥ (उपजातिः) तदीय-शिष्यत्वमयं समार, श्रीयुक्तिरङ्गो गणभृदयालुः । विद्याचणो जातजगत्प्रतिष्ठो-पाध्याय आबाल-सुशीलपाली ॥ १३८ ।। अस्याभवच्छीमुखलाभशिष्यो-पाध्याय आनम्र-समस्तजैन: । अर्हन्मताऽम्भोज-विकाशनाऽके, सम्यक्त्वदाता गणिमुख्य एषः ॥ १३९ ॥ (तामरसचम्)-जयपाल: सुविनीतसुशिष्यः, समभवदस्य सुवाचकमुख्यः । सकल-जिनागम-पाठनशक्तः, क्षिति For Private And Personal Use Only

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