Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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श्रीजिन
कृपाचन्द्र
सूरिचरित्रम् ।। ५९ ।।
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चन्द्राऽङ्गजः सूरिः श्री जिनकीर्तिरत्नविमलाख्यो नः श्रिये जायताम् ॥ ११८ ॥ ( वसन्ततिलका ) - भूम्यग्नि-वेदे धरणीमितहायनेऽसौ प्रादुर्बभूव रस- वेद-युगेन्दुवे । दीक्षां ललौ शशि पंडन्धि-धरामिताऽब्दे, जग्राह सूरिपदवीं जिनवर्द्धनाऽऽरूयः ॥ ११९॥ सूरीश्वरः सकल-तन्त्र - गभीरबुद्धि - भूमण्डल- प्रसृत-शारदचन्द्रकीर्तिः। श्रीवीरशासन विकासन-कारकोऽसौ वाजिं -हाsब्धि-शशिनि स्वरगाच वर्षे || १२० || ( युग्मम् ) शैलाब्धि- वेद-शशि- सम्मितैर्वत्सरेऽसौ जन्माग्रहीत् क्षिति-रसोदधिं भूमिवर्ष आदाद् व्रतं घर तुरङ्ग-युगेकवर्ष माघे सिते शुभदिने जिनभद्र एषः ॥ १२१ ॥ सम्प्राप सूरिपदमुत्तमसिद्धतेजा राकातिथौ युग मही-शेरे-भूमिताब्दे । मार्गेऽसिते हिमगिरीन्द्रसुता सुतियां, यातो दिवं कुभलमेरुपुरे महीयान् ||१२२|| ( युग्मम् )
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( पृथ्वी ) - चतुर्दशसमावयाः सकलसम्पदं लोष्ठवद्, विहाय शुभहायने दहन तर्क-वेदें क्षितौ । शुभङ्कर-कराब्जतः स जिनवर्द्धनस्य प्रभोः, शुचावसित पक्षके शुभदविश्वविध्यामसौ ॥ १२३ ॥ ( मन्दाक्रान्ता ) -- दीक्षां लावा ख-मुनि-जलधीन्दुप्रमाणे चे वर्षे, संलेभानो गणिपदमसौ सर्वशास्त्राऽवगाही सोपाध्यायस्तदनु समभूद्विन्दु-स्वब्धि-चन्द्रे काब्धि-क्षिति- मित- समायामभूत्सूरिभाजः ॥ १२४ ॥ ( युग्मम् ) ( उपजातिः ) श्रीकीर्तिरत्नाऽभिघ सर्वसूरि-चूडामणिर्विश्वगुणाभिरामः । जगद्धिताऽनेक सुकृत्य कर्ता, पायात् सदा नः सुसुतान् पितेव ॥ १२५ ॥ आजन्म - शीलवत-जात - तेजो- देदीप्यमानः सवितेव लोके सुधांशुवच्छीतलशान्तमूर्ति - रासीदसौ शासनदीसिकारी ।। १२६ ।। प्रधानशिष्यः समभृदमुष्योपाध्याय एप प्रथितः सुविद्वान् । श्रीमानशेषाऽऽगमसत्पटीयाँ - लावण्यशीलो गणभृत्कलावान् ।। १२७ ।। एतस्य शिष्यो विनयी बभूवोपाध्यायभाजो निरवद्यविद्यः । मान्यः सतां विश्वजनीन आर्त- त्राता विधाता जनता- सुखस्य ॥ १२८॥
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प्रथमः
सर्गः ।
॥ ५९ ॥

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