Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ऽरविन्दकद्वयं, नमामि जैनशासन-प्रभूत-वृद्धि-कारकम् ॥ ६६ ॥ ( शिखरिणी ) - यशोभद्रसूरिं भविकजनताऽज्ञानतिमिरं, प्रहातुं भास्वन्तं समुदितमनुं नौमि सततम् । कृपापारावारं सकल-वसुधापावनकर, भवाम्भोधौ मञ्जत्सुजननिवहानां दृढतरम् || ६७ ।। (द्रुतविलम्बितम् ) – विमलचन्द्र शुभाऽभिघसद्गुरुं, प्रथित-विश्वजनीनमघाऽपहम् । स्व-पर-शास्त्र-विशेषविचक्षणं, सुयशसं परिणौमि महत्तरम् ।। ६८ ।। ( उपजातिः ) - श्रीदेवचन्द्राऽभिधमुख्यरिं, शिष्योपशिष्यैः परिषेविताङ्गिम् । कक्कुब्गणं मण्डितमात्मकीर्त्या, तं लोकमान्यं विबुधं स्तवीमि ॥ ६९ ॥ श्रीनेमिचन्द्र बरसूरिराजं प्रौढप्रतापं शरदिन्दुकीर्तिम् । श्रीवीतरागोदित-धर्म्म-पद्म- दिवाकरं प्राज्ञतमं वन्दे ॥ ७० ॥ श्रीमन्तमुद्योतनसूरिराज, प्रेक्षावतामय्यतमं समीडे । प्रभाविनं निर्मलकीर्तिमन्तं सद्धर्मसेतुं कुमतैककेतुम् ॥ ७१ ॥ श्रीवर्द्धमानं जनगीयमान - यशः श्रिया सत्तपसां श्रिया च । शोशुभ्यमानं जितमोहमलं, हताऽऽन्तराऽऽरं विबुधं नमामि ॥ ७२ ॥ ( पञ्चचामरम् ) - जिनेश्वरं प्रभावकं विशेष-शेमुषीधरं, हाखण्ड - शील- शालिनं दयालुतासुमण्डितम् । अनेकशास्त्रवेदिनं सभा-सुबादि जित्वरं समस्त जीवपालकं नमामि तं गुणोदधिम् ॥ ७३ ॥ ( तोटकवृत्तम् ) – जिनचन्द्रमदअसुकीर्तिकरं, जनता भवभीति- कुबुद्धिहरम् । पुनरागमहा रिमहाव्रतिनं, प्रणमामि सदा सकलार्तिश (ह) रम् ॥ ७४ ॥ ( द्रुतविलम्बितम् ) - सुजन - वारिजराजिनभोमणिं, शम-दमाऽऽदि-समस्तगुणाऽऽश्रयम् । शशिकलाऽमलकीर्तिलताऽऽकुलं ह्यभयदेवयतीशमभिष्टुवे ॥ ७५ ॥ ( शार्दूलविक्रीडितम् ) - श्रीमन्तं जिनवल्लभं सुविदुषामग्रेसरं सत्तमं मार्तण्डप्रभमुन्नतं सुयशसा चन्द्रोपमेन क्षितौ । संसाराब्धि-- निमज्जतामसुमतां पोतायमानं प्रभुं स्त्रीयोदार-चरित्र-चित्रितभुवं सन्नौमि सूरीश्वरम् ॥ ७६ ॥ नक्षत्रेशसुशीतलं दिनमणि- प्रस्फारतेजस्विनं, भक्त्यानम्र-धराधिपेन्द्र For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir

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