Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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ताssख्यं प्रणमामि सूरिं जगञ्जनाऽऽनन्दकरं प्रभासम् । सद्धीमतामादिममर्च्चवर्यं विद्वत्तमं बोधितभूरिलोकम् ॥ ४५ ॥ ( शार्दूलविक्रीडितम् ) - श्रीमत्सुप्रतिबद्धरिमनिशं तोष्टोमि सत्कीर्तिकं, श्रीमद्वीरवि प्रशासन सरोजस्तोम-हंसायितम् । लोकाऽज्ञान-तमिस्रपुत्र हरणे सूर्यायितं भूतले, सद्बोधामृतपायिनं सुभविनां संसारवार्धं तरिम् ।। ४६ ।।
( आख्यानकी ) तमिन्द्रदिनाऽभिधसूविर्य, संसार बाधा - दव- वारिवाहम् । वादीन्द्र-दन्तिब्रज- सिंहकल्पं, भक्त्या - भिवन्दे जगदर्चनीयम् ॥ ४७ ॥ ( उपजातिः ) - श्रीभिरिं प्रथितप्रताप मदश्रमाहात्म्यमुपेतवन्तम् । कारुण्यकूपं कुम ताज शीतं स्तवीम्यहं निर्मलकीर्तिमन्तम् ॥ ४८ ॥ सिंहोरुसचं बिलसच्चरित्रं, जगत्पवित्रं निरवद्यशीलम् | अध्यात्मविज्ञानवतां वरिष्ठं, नोनोमि तं सिंहगिरिं च सूरिम् ।। ४९ ।। ( शार्दूलविक्रीडितम् ) – वज्रस्वामिनमानतक्षितिजां मौकुट्यरत्नप्रभाभास्वत्पादनखप्रभं सुयमिनामग्रेसरं श्रीकरम् । सद्ध्यानाऽसि हताऽऽन्तरार (रि) मनघं दुर्वादिपक्षच्छिदं धर्हद्भाषित-शुद्धधर्मजलजोल्लासभानुं स्तुवे ॥५०॥ ( उपजातिः ) — श्री वज्रसेनाऽभिधविर्य, सर्वेषु शास्त्रेषु कृतश्रमं च । यशोऽभिरामं सुतपःप्रतिष्ठं, जितेन्द्रियं तं शिरसा नमामि ॥ ५१ ॥ चन्द्राऽऽख्यमाचार्यवरं प्रणौमि चन्द्रावदाताऽमलकीर्तिमन्तम् । सूर्यो तेजिष्ठमतुच्छबुद्धि, त्रिगुप्तिमन्तं (गुतं ) शमताम्बुराशि ॥ ५२ ॥ समन्तभद्रं धवलीकृताऽऽयं शङ्खेन्दु - कुन्दोपमयाऽऽत्मकीर्त्या । सूरीश्वरं सर्वमत-प्रविज्ञं, प्रकाममीडे कमनीयमूर्तिम् ॥ ५३ ॥ प्रयोतनं खिरं नमामि प्रद्योतनांऽशुप्रतिमानभासम् । सम्पूजनीयाङ्गिसरोजयुग्मं, सत्कीर्तिमालं सभिवादयेऽहम् ॥ ५४ ॥ ( वसन्ततिलका ) -- श्रीमानदेवयतिराजमुदार कीर्ति, स्वीयाऽन्यदीय- मतसागरपारयातम् । सन्मुक्तिमार्गपरिदर्शन दक्षिणं च , सन्तोष्टवीमि शरणागतदुःखवारम् ॥ ५५ ॥ श्रीमा
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