Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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SinMahavir.jan AradhanaKendra
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Acharys Sin Kalimsagar
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सकलाऽऽईतपूज्यतमं प्रणुमः ॥ ८८ ।। (मजुभाषिणी)-जिनभद्रसूरिमखिलाऽऽहंतेजनैः, परिपूज्य मान-पदसारस-द्वयम् । अतिदुर्लभाऽव्यय-पदाऽऽप्तिकारक, परिणीमि तारकवरं त्रिगुप्तिकम् ॥८९ ।। परमाऽऽतीय-हृदयाजभास्कर, मदनातिदर्प-दलनाऽतुलौजसम् । निज-भक्त-चित्त-शमताविधायकं, जिनचन्द्रमूरिमनिशं नमाम्यहम् ।। ९०॥
(दुतविलम्बितम् )--जिनसमुद्रमशेषविवादिनां, सदसि जित्वरमागमपारगम् । अभयदानपरव्रतमुज्वलं, प्रथितसूविरं प्रणुमः प्रभुम् ॥९१||(मञ्जुभाषिणी)-जिनहंससूरिमवनीभुजाऽऽदिभिः, पूजिताउतिपब-युगलं दयानिधिम् । निरवद्य-विद्यमतिहृयदेशनं, भिवादये तमनिशं प्रभासुरम् ।। ९२ ॥ (वैतालीयम् )-दिनमणिसम-तानव-विर्ष, श्रीजिनमाणिक्याऽभिधानकम् । प्रणमामि प्राणिरक्षिणं, स्व-पर-समयविदुषां पुरःसरम् ।। ९३ ।। (उपजातिः)–श्रीमन्तमेनं जिनचन्द्रसूरिं, वशीकृताऽनेकसुरं महान्तम् । सुखस्थितं गुर्जरदेशमध्ये, रम्ये पुरे पट्टणनामधेये ॥९४।। अकबराख्यः पृथिवीपतीन्द्रः, आकर्णितैतरहु । चित्रशक्तिः । विज्ञप्तिपत्रैरतिभक्तिपूर्णः, प्राजूहवत्तं वरलाभपुर्याम् ॥ ९५ ॥ (युग्मम् ) युगप्रधानः स हि संविहृत्य, क्रमेण तत्राऽभ्युपयात एषः । चमत्कृताऽनेकविशेष शक्ति, प्रादीदृशत्तं यवनाधिराजम् ।। ९६ ।। निरीक्ष्य लोकोत्तरशक्तिमस्य, निपीय पीयूषसमोपदेशम् । अमोमुदीच्छ्रीयवनाधिपेन्द्र-श्चमत्कृतः सत्कृतांश्व रिम् ॥९७।। अमारिघोष समचीकरत्स, पर्युषणादौ गुरुपर्वघने । धर्म विशुद्धं परमार्हतं हि, गुरूपदेशादमताऽवनीपः ॥९८॥ ( स्रग्धरा )-तत्पढे सिंहसरिः समभवदतुला प्रोल्लसत्कीर्तिशाली, सर्वाऽऽशाव्याप्त-तेजा रविरिव सकलाऽज्ञान-तामिस्रहन्ता । बुद्ध्या वागीशकल्पः सुरतरुवदसौ याचकाऽर्थ प्रदाता, निर्मुक्ताऽशेषमोहः क्षितितलविजयी शासनौनत्यकारी ॥ ९९ ॥ ( वसन्ततिलकावृत्तम् )-श्रीमानशेषगुणवाजिनराज
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