Book Title: Jinkrupachandrasurishwar Charitram
Author(s): Jaysagarsuri
Publisher: Jaysagarsuri
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श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिचरित्रम्
॥ ५६ ॥
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नतुङ्गमनघं मुनिराजमेनं, नैदाघ- भानुसम - दुःसह- दीप्तिमन्तम् । निःशेष-भूमिजनतामहितं समीडे, नानानृपालसदसि प्रकटप्रभावम् ।। ५६ ।। ( शार्दूलविक्रीडितम् ) वीरं सूविरं नमामि शिरसा दुर्जय्य - मोह- क्षितेः कर्तारं भुवि देहिनामघततेहन्तारमिष्टप्रदम् । कर्मोन्मूलन - संविधानकुशलं सम्यक्त्वसम्प्रापकं, संसारार्णवतारकं सुभविनां ध्येयक्रमाम्भोरुहम् ॥ ५७ ॥
( त्रोटकम् ) - जयदेव सुनामकसूरिवरं जनता भवभीति-विनाशकरम् । शरणाऽऽगत - दीनजनाऽऽर्तिहरं, करुणामयमूर्तिमहं स्तुवके ॥ ५८ ॥ ( शार्दूलविक्रीडितम् ) – येनाऽकारि सुशासनस्य बहुधा सौनत्यमुर्वीतले, जित्वाऽनेक- विवादिष्ट - न्दमसकृच्चक्रे स्वपक्षस्थितिः । माहात्म्यं विजयश्रिया सह परं व्यस्तारि विद्याऽब्धिना, देवानन्दमभिष्टवीमि तमहं सूरीश्वराऽग्रेसरम् ।। ५९ ।। ( उपजातिः ) — श्रीविक्रमं विक्रमवन्तमीडे, सच्छास्त्रपारीणमगाधबुद्धिम् । सत्कीर्तिबह्वीललितालवालं, सूरीश्वरं शान्ततमं वरिष्ठम् ॥ ६० ॥ सिंहोरुसत्वं नरसिंहसूरिं क्षान्त्या च पृथ्वी समतामुपेतम् । कान्त्या महत्या शशिनः समानं, तेजोऽधिकैर्भानुसमं समीडे ॥ ६१ ॥ जाज्वल्यमानं विहिताऽतिघोर तपःप्रभूतोत्थिततेजसा हि । रत्नत्रयीभूषणभूषितं तं, समुद्रसूरिं प्रणमामि नित्यम् ।। ६२ ।। आचार्यवर्यव्रज-मौलिरत्नं, श्रीमानदेवं यशसाऽभिरामम् । नमस्यतां पापतरोः कुठारं, सम्पश्यतामव्ययसौख्यदायम् ।। ६३ ।। ( त्रोटकम् ) -- विबुधप्रभसूरिवरं जयिनं जगदुज्ज्वल-भूरि-सुकीर्तिकरम् । कतिजन्म- सुसञ्चित - पापहरं, निजभक्तिकृतामनिशं प्रणुमः ॥ ६४ ॥ ( भुजङ्गप्रयातम् ) - जयानन्दस्रुरिं नमामि प्रकामं, भवाब्धिप्रतारं समेषामुदारम् । लसत्कीर्तिमालं ज्वलत्सत्प्रतापं जितात्मानमुचैः शरण्यं वरेण्यम् ॥। ६५ ।।
( प्रमाणिका ) -- रविप्रभं विभासुरं जगज्जनैः समीडितं, पारधाममन्दिरं समस्त रिनायकम् । अनेक-भूप-चर्चित क्रमा
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प्रथमः
सर्गः ।
।। ५६ ।।

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