________________
श०५ उ०८-६ प्र०१७०
३०४
भगवती-सूची
१५३
चौक
हेतु-अहेतु १४०-१४६ हेतु-अहेतु के आठ सूत्र
अष्टम निग्रंथी पुत्र उद्देशक १४६ भ० के शिष्य नारदपुत्र और निग्रंथी पुत्र के प्रश्नोत्तर १५० नारदपुत्र का मत-सर्व पुद्गल सार्ध, समध्य, सप्रदेश है
निग्रंथीपुत्र का सापेक्षवाद ----- द्रव्यादेश आदि का पुद्गलों से अल्प-बहुत्व
जीवों की वृद्धि-हानि १५२ जीव घटते नहीं हैं, सदा समान रहते हैं।
चौवीस दण्डक में जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और
समान भी रहते है १५४ सिद्ध घटते नहीं हैं १५५ चौवीस दण्डक के जीवों का हानि वृद्धि और अवस्थिति काल १५६ सिद्धों का वृद्धि और अवस्थिति काल १५७ क- जीवों का सोपचय-निरुपचय. ४ विकल्प
ख- चौवीस दण्डक के जीवों का सोपचय-निरुपचय सिद्ध सोपचय निरुपचय है जीवों का सोपचय-निरुपचय काल चौवीस दण्डक के जीवों सोपचय-निरुपचय काल सिद्धों का सोपचय-निरुपचय काल
नवम राजगृह उद्देशक ६१२ राजगृह नगर की व्याख्या
प्रकाश और अन्धकार १६३-१६४ प्रकाश और अन्धकार का शुभाशुभ १६५-१७० चौवीस दण्डक में प्रकाश और अन्धकार अर्थात् पुद्गलों
का शुभाशुभपना
xx rur
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org