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अ० ६ उ० ३ गाथा १५ ७७५ दशवैकालिक-सूची १६ अविनीत शिष्य की मनोवृत्ति का निरूपण. २० विनीत की सूक्ष्म-दृष्टि और विनय पद्धति का निरूपण. २१ शिक्षा का अधिकारी.
अविनीत के लिये मोक्ष की असंभवता का निरूपण. २३ विनय-कोविद के लिये मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन.
नवम विनय-समाधि अध्ययन (तृतीय उद्देशक) : पूज्य कौन ? पूज्य के लक्षण और उसकी अर्हता का उपदेश. आचार्य की सेवा के प्रति जागरूकता और अभिप्राय की आराधना. आचार के लिए विनय का प्रयोग, आदेश का पालन और आशातना का वर्जन. रानिकों के प्रति विनय का प्रयोग, गुणाधिक्य के प्रति नम्रता,
वन्दनशीलता और आज्ञानुवतिता. ४ भिक्षा-विशुद्धि कौर लाभ-अलाभ में समभाव.
संतोष-रमण. वचनरूपी कांटों को सहने की क्षमता. वचनरूपी कांटों की सुदुस्सहता का प्रतिपादन. दौर्मनस्य का हेतु मिलने पर भी सौमनस्य को बनाए रखना. सदोष भाषा का परित्याग. लोलुपता आदि का परित्याग. आत्म निरीक्षण, मध्यस्थता. स्तब्धता और क्रोध परित्याग. पूज्य-पूजन, जितेन्द्रियता और सत्य-रतता. आचार-निष्णातता गुरु की परिचर्या और उसका फल.
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