Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 983
________________ गाथा ५५७ ६५५ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ५३५ तेजस्काय वायुकाय और त्रसकाय म्रक्षित का निषेध गाथा ५३६ ख- प्रारम्भ के तीन भंग अशुद्ध और एक भंग शुद्ध गाथा ५३७ क- अचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित की चतुर्भगी ख- अहित का ग्रहण और गहित का निषेध गाथा ५३८ अहित म्रक्षित का निषेध गाथा ५३६ गहित म्रक्षित का निषेध गाथा ५४० क- निक्षिप्त के दो भेद ख- प्रत्येक भेद दो-दो भेद गाथा ५४१ पृथ्वीकाय म्रक्षित के ६ भेद इसी प्रकार शेष पांच काय म्रक्षित के ६-६ भेद सब मिलकर षटकाय म्रक्षित के भेद गाथा ५४२-५४३ सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित के भंगों का वर्णन गाथा ५४४ सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित के ४३२ भांगे बनाने की विधि गाथा ५४५-५४८।। कल्प्य और अकल्प्य म्रक्षित सचित्त गाथा ५४६ तेजस्काय म्रक्षित के सात भेद गाथा ५५०-५५१ सात भेदों की व्याख्या गाथा ५५२-५५३ अचित्त तेजस्काय म्रक्षित के यतनापूर्वक लेने की विधि गाथा ५५४.५५५ क- सोलह भंगों का विवरण ख- प्रथम भंग शुद्ध और शेष भंग अशुद्ध गाथा ५५६ क. अत्युष्ण इक्षुरस आदि लेने से दो प्रकार की विराधना ख- वायुकाय निक्षिप्त के दो भेद गाथा ५५७ क- वनस्पतिकाय और त्रसकाय निक्षिप्त का वर्णन ख- अनंतर निक्षिप्त लेने का निषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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