Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 986
________________ गाथा ६५४ ९५८ पिण्ड नियुक्ति-सूची गाथा ६२३ गाथा ६२४ गाथा ६२५ गाथा ६२६ गाथा ६२७ गाथा ६२८ गाथा ६२६ गाथा ६३०-६३३ गाथा ६३४ गाथा ६३५ अलेपवाले द्रव्य अल्प लेपवाले द्रव्य बहु लेपवाले द्रव्य संसृष्ट, असंसृष्ट, सावशेष, और निरवशेष के आठ भंग क- छदित की तीन चतुर्भगी ख- चार सौ बत्तीस अवान्तरभंग छदित ग्रहण करने से लगनेवाले दोष क. ग्रासषणा के चार निक्षेप ख- द्रव्य ग्रासैषणा का उदाहरण ग- भाव ग्रासघणा के पांच भेद द्रव्य ग्रासैषणा के दो उदाहरण ग्रासैषणा का उपदेश क- भाव ग्रासैषणा के दो भेद ख- अप्रशस्त भाव ग्रासैषणा के पांच भेद क- सयोजना के दो भेद ख- द्रव्य संयोजना के दो भेद बाह्य संयोजना की व्याख्या भाव संयोजना की व्याख्या द्रव्य संयोजना के अपवाद आहार का प्रमाण प्रमाण दोष के पांच भेद अल्पहार के गुण हित अहित की व्याख्या मिताहार की व्याख्या काल के तीन भेद शीतकाल उष्णकाल और साधारण काल में गाथा ६३६ गाथा ६३७-६३८ गाथा ६३६ गाथा ६४०-६४१ गाथा ६४२-६४३ गाथा ६४४-६४७ गाथा ६४८ गाथा ६४६ गाथा ६५० गाथा ६५१ गाथा ६५२-६५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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