Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 991
________________ महानिसीह - सुयक्खंध ( महानिशीथ श्रुतस्कन्ध ) यह ग्रंथ भी मुद्रित नहीं हुआ है । मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के द्वारा तैयार की गयी प्रेस-कापी पर से यह विवरण तैयार किया गया है । पृष्ठ पृ० पृ० पृ० पृ० पृ० पृ० प्रथम अध्ययन 'सल्लुद्धरण' १ शास्त्र का प्रयोजन आरम्भ में तीर्थ और अर्हतों को नमस्कार । तत्पश्चात् 'सुयं में' वाक्य से विषय प्रारम्भ । तुरन्त ही ऐसा कथन कि छद्मस्थ साधु और साध्वी महानिशीथ श्रुतस्कन्ध के अनुसार आचरण करने वाले हों तो एकाग्रचित्त होकर आत्मा में अर्भिरमण करते हैं । २ वैराग्य वर्धक गाथाएँ जिनमें निःशल्यता प्राप्त करने पर भार दिया है। शार्दूलविक्रीडित छन्द का प्रयोग - ( गाथा १२ ) ४ 'हयं नाणं' इत्यादि आवश्यक नियुक्ति की उद्धृत गाथाएँ ( गाथा ३५ इत्यादि ) ६ शास्त्रोद्धार की विधि प्रतिमा-वंदन और श्रुतदेवता विद्या का लेखन – इससे मंत्रित होकर सोने स्वप्न की पर सफलता ६ निःशल्य होकर सबको क्षमापना करना । ७ इससे केवल की भी प्राप्ति ७ दूषित आलोचना के दृष्टांत Jain Education International For Private & Personal Use Only ( गाथा ६४ ) ( गाथा ७३ आदि) www.jainelibrary.org

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