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महानिशीथ-सूची
पृ. ४६
पृ. ५०
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पृ. ५१ पृ. ५२ पृ. ५४
प्र. ५७ पृ. ६३ पृ. ६८ पृ. ७० पृ. ७०
इन चार अध्ययनों के लिए निर्दिष्ट तपस्या सांगोपांग श्रुत का सार—ये चार अध्ययन हैं सभी श्रेय में विघ्न होता है अतएव मंगल करणीय हैं मंत्र, तंत्र, आदि अनेक विद्याओं के नाम पांच मंगलों के उपधान का प्रश्न उपधान विधि नमस्कार सूत्र के पदादि (देखिए "नमस्कार स्वाध्याय' पृ० ६०, ८१) (यह पुस्तक बंबई से प्रकाशित है) नमस्कार सूत्र का अर्थ जिनपूजा की चर्चा तीर्थंकर स्तन.' में वर्धमान की कथा के प्रसंगों का संक्षेप पंचमंगल की नियुक्ति भाष्य और चूणि का उल्लेख “ये सब व्युछिन्न हो गये थे। वज्रस्वामी ने उद्धार कर मूल सूत्र में लिखा', है । "आचार्य हरिभद्र द्वारा खंडित प्रति के आधार से उद्धार हुआ है त्रुटित मालूम पड़े तो दोष नहीं देना।"--- ऐसा उल्लेख है सिद्धसेन दिवाकर, वुड्डवाई, (वृद्धवादी), जक्खसेण, (यक्षसेन)देव गुप्त, यशोवर्धन क्षमाश्रमण के शिष्य रविगुप्त, नेमिचन्द्र, जिनदास गणि क्षमाश्रमण, सत्यश्री प्रमुख युगप्रधान आचार्यों द्वारा महानिशीथ का बहुत मान हुआ है पंचनमस्कार के पश्चात् इरियावहिय आदि कहना--- ऐसा निर्देशक्रम से द्वादश अंगों की भी तपस्या विधि और उससे लाभ इत्यादि (पृ० ८६ में तृतीय उद्देश समान ऐसा उल्लेख आता है किन्तु प्रथम-दूसरे के विषय में कोई निर्देश नहीं है)
पृ. ७०
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७१
पृ. ७१
पृ. ७४
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