Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 995
________________ महानिशीथ-सूची ९६७ अ०६ पृ० १२६ कल्की के समय में "सिरिप्पभ' अनगार का प्रादुर्भाव पृ० १२७ योग्य-अयोग्य अणगार का विवेक पृ० १३३ दस आश्चर्य का वर्णन पृ० १३६ द्रव्यस्तव करने वाला असंयत पृ० १३८ जिनालयों का संरक्षण आवश्यक पृ० १३६ उसके जीर्णोद्धार संबंधी चर्चा, पृ० १३६ सावधाचार्य का महानिशीथ की ६३वीं गाथा की व्याख्या करने में हिंचकिचाना। कारण यह था कि किसी समय आर्या ने नमस्कार करते समय उनका स्पर्श किया था। पृ० १४२ उत्सर्ग-अपवाद मार्ग का अयोग्य के समक्ष निरूपण करने के कारण उन्होंने (सावधाचार्य ने) अनंत संसार बाँधा तथा उनके अनेक भव षष्ठ अध्ययन-गीयत्थ विहार पृ० १४७ दशपूर्वी नंदिषेण वेश्यागृह में पृ० १४८ इसमें दोष-सेवन होने पर गुरु को लिंग (वेष) सौंप देना और प्रायश्चित्त करना—इसका समर्थन. पृ० १४२ प्रायश्चित्त की विधि पृ० १४५ मेघमाला का दृष्टांत पृ० १४६ आरंभ-त्याग का उपदेश पृ० १४७ आरंभ-त्याग की अशक्यता के विषय में ईसर का दृष्टान्त, पृ० १४८ ईसर गौसालक हुआ यह निरूपण पृ० १४६ रज्जा आर्यिका का दृष्टांत प्राशूक पानी की निंदा के कारण दुविपाक पृ० १६३ अगीतार्थ के विषय में लक्षणार्या का दृष्टान्त द्वितीय चलिका पृ० १७७ विधिपूर्वक धर्माचरण की प्रशंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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