Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 968
________________ प्रकीर्णक-सूची ६४० गाथा २३६ १२६ स्वाध्याय की महिमा १३० श्रुतहीन का बाह्यतप १३१-१३३ नित्यभोजी ज्ञानी की अधिक निर्जरा वास्तविक अनशन १३५ अज्ञानी और ज्ञानी की निर्जरा में अन्तर १३६-१४३ ज्ञान की महिमा १४४-१४६ वहुश्रुत की महिमा १४७-१७५ ज्ञान और चारित्र से कर्मक्षय १७६-१८८ क- संलेखना की विधि ख- संलेखना के दो भेद १८६-२०८ कषाय-विजय, राग-द्वेष निग्रह २०६-२११ अप्रमाद का उपदेश २१२-२१४ उपधित्याग २१५-२१६ आत्मा का अवलम्बन २१७-२२१ प्रमाद प्रतिक्रमण मिथ्यात्व प्रतिक्रमण २२२-२३३ क- निश्शल्य आलोचना ख- आराधक-विराधक २३४-२३६ शुद्ध प्रत्याख्यान २३७-२३६ क- लोक में सर्वत्र जन्म-मरण ख- सर्व योनियों में जन्म-मरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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