Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 972
________________ पिण्ड नियुक्ति-सूची १४४ गाथा ११५ गाथा ८६ द्रव्य और भाव उद्गम का स्वरूप गाथा ८७-६० द्रव्य उद्गम का उदाहरण गाथा ६१ क- दर्शन शुद्धि से चारित्र शुद्धि ख- उद्गम शुद्धि से चारित्र शुद्धि गाथा ६२-६३ सोलह उद्गम दोष गाथा ६४ आधाकर्म सम्बन्धि चार द्वार गाथा ६५ आधाकर्म के समानार्थक शब्द गाथा ६६ व्य आधा की व्याख्या गाथा ६७ भाव आधा की व्याख्या गाथा ६८ द्रव्य अध:कर्म की व्याख्या गाथा ६६ भाव अधःकर्म की व्याख्या गाथा १००-१०२ आधाकर्म से अधोगति गाथा १०३ आत्मघ्न की व्याख्या गाथा १०४ द्रव्य आत्मघ्न और भाव आत्मघ्न गाथा १०५ चारित्र के नाश से ज्ञान दर्शन का नाश तथा इस सम्बन्ध में निश्चय दृष्टि और व्यवहार दृष्टि गाथा १०६ क- द्रव्य आत्मकर्म ख- भाव आत्म कर्म के दो भेद गाथा १०७ भाव आत्मकर्म की व्याख्या. गाथा १०८-११० क- परकृत कर्म का आत्मकर्मरूप में परिणत होना. ख- कूट उपमा का जिनवचनों से विरोध. ग- भावकूट से कर्म बंध गाथा १११ आधाकम आहार ग्रहण करने से कर्म बंध. गाथा ११२ प्रतिसेवना. प्रतिश्रवणा. संवासन. और अनुमोदन की क्रमश: गुरूता लघुता. गाथा ११३ प्रतिसेवना आदि चार द्वार. गाथा ११४.११५ प्रतिसेवना की व्याख्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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