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गाथा १२८
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प्रकीर्णक-सूची
आराधना से शुद्धि ४८-५२ शल्य रहित की शुद्धि ५३-५४ संवृत और असंतृत की निर्जरा
शील और संयम से भाव शुद्धि
विशुद्ध चारित्र से दुःख क्षय ५७-५८ निश्शल्य होने से विशुद्ध चारित्र
५६ पाँच संक्लिष्ट भावनाओं का त्याग ६० एक असंक्लिप भावना का समादर ६१ क- कन्दर्प भावना ६२ ख- किल्विषक भावना ६३ ग- अभियोगी भावना ६४ घ- आश्रवी भावना ६५ ङ. सांमोही भावना
६६ असंक्लिष्ट भावना से शुद्ध ६७-७७ बाल मरण वर्णन
७८ निश्शल्य आलोचक है वह आराधक है ७६-८५ आलोचना आदि चौदह प्रकार की विधि ८६-८७ क- आचार्य के गुण
ख. अट्ठारह स्थान
ग- आठ स्थान ८८-८९ उपस्थापना के दश स्थान ६०-६३ आचार्य के गुण १४-१२६ क- सशल्य है वह आराधक नहीं
ख- निश्शल्य है वह आराधक है ग- आलोचना के दस दोष
घ- ज्ञान प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करने का उपदेश १२७-१२८ बारह प्रकार के तप का आचरण
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