Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 965
________________ गाथा १६० ६३७ प्रकीर्णक-सूची ११८-१२० पुष्करवर द्वीप में चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव १२१-१२३ पुष्करार्ध द्वीप में १२४-१२६ मनुष्य लोक में , १२७ क- मनुष्य लोक के बाहर चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव ख- ज्योतिषी देवों की गति का संस्थान १२८-१३६ ज्योतिषी देवों की पंक्तियाँ १३७ क- चन्द्र सूर्य और मण्डलों में प्रदक्षिणावर्त गति ख- नक्षत्र और ताराओं के अवस्थित मण्डल १३८-१३६ ज्योतिषों देवों की गति का मनुष्यों पर प्रभाव १४०-१४१ चन्द्र सूर्य का ताप क्षेत्र १४२-१४६ चन्द्र की हानि वृद्धि का कारण १४७-१४८ चर स्थिर ज्योतिषी देव १४६-१५२ मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र सूर्य १५३ चन्द्र सूर्य का नक्षत्रों से योग १५४-१५६ क- चन्द्र सूर्य का अन्तर ख- सूर्य से सूर्य का अन्तर ग- चन्द्र से चन्द्र का अन्तर १५७-१५८ एक चन्द्र का परिवार १५६-१६२ ज्योतिषी देवों की स्थिति १६३-१६५ बारह देवलोकों के बारह इन्द्र अहमिन्द्र ग्रैवेयक देव १६७-१६८ ग्रैवेयक देवों में उपपात १६६-१७३ बारह देवलोकों की विमान संख्या १७४-१७६ वैमानिक देवों की स्थिति १८०-१८६ प्रैवेयक देव और अनुत्तर देवों की स्थिति १८७-१८८ विमानों के संस्थान १८६-१६० विमानों का आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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