Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 964
________________ गाथा ११७ ६३६ ६८-७२ व्यन्तर देवों के महद्धिक सोलह इन्द्र ७३ क- तीनों लोक में व्यन्तरेन्द्रों के स्थान ख- अधोलोक में भवनेन्द्रों के स्थान ७४-७८ ७६ ८०-८१ ८२ ८३-८६ ८७-२ ६३ ६४-६५ ६६ ६७ ६८-१०० १०१-१०४ १०५-१०८ १०६-११० १११-११२ ११३-११४ ११५-११७ व्यन्तरेन्द्रो के भवनों का जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट विस्तार व्यन्तरेन्द्रों की स्थिति ज्योतिषो देवों का वर्णन पांच ज्योतिषी देव ज्योतिषी देवों के विमानों का संस्थान धरणितल से ज्योतिषी देवों की ऊंचाई ज्योतिषी देवों के मण्डल, मण्डलों का आयाम - विष्कम्भ बाल्य परिधि ज्योतिषी देवों के विमानों को वहन करने वाले देवों की संख्या ज्योतिषी देवों की गति ज्योतिषी देवों की ऋद्धि ताराओं का अन्तर चन्द्र के साथ योग करने वाले नक्षत्र सर्व आभ्यन्तर, सर्व बाह्य, सर्वोपरि और सबसे नीचे भ्रमण करने वाले नक्षत्र Jain Education International सूर्य के साथ योग करने वाले नक्षत्र जम्बूद्वीप में चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव लवण समुद्र में धातकी खण्ड में कालोद समुद्र में 31 33 12 " प्रकीर्णक-सूची 33 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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