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प्रकीर्णक-सूची
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गाथा १४२ १८ इन्द्रिय रूप चौर ६६-१०० कर्म क्षय
ज्ञानी और अज्ञानी के कर्म क्षय में अन्तर
___ अन्तिम समय में द्वादशाङ्ग श्रुत चिन्तन असम्भव १०३-१०६ क- संवेग की वृद्धि
ख- संवेगी के कर्तव्य १०७ मोक्ष मार्ग
१०८ श्रमण व संयत १०६-११२ सर्व-प्रत्याख्यान ११३-११६ चार मंगल, चार शरण, पाप-प्रत्याख्यान
आराधक १२१-१२७ चिन्तन-मनन
तप का आराधन आराधन ध्वज वास्तविक संथारे से सर्वथा कर्मक्षय
आराधक की तीन भव से मुक्ति १३२-१३५ पताका हरण
भाव जागरण १३७ क- चार प्रकार की आराधना
ख- तीन प्रकार की आराधना १३८-१३६ क- उत्कृष्ट आराधना से उसी भव से मोक्ष
ख- जघन्य आराधना से सात आठ भव से मोक्ष
१२०
१२६
आरा
१४०
क्षमा याचना
१४१
धीर और अधीर की मृत्यु उपसंहार-सम्यक् आराधना का फल
१४२
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