Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 951
________________ प्रकीर्णक-सूची ६२३ गाथा १४२ १८ इन्द्रिय रूप चौर ६६-१०० कर्म क्षय ज्ञानी और अज्ञानी के कर्म क्षय में अन्तर ___ अन्तिम समय में द्वादशाङ्ग श्रुत चिन्तन असम्भव १०३-१०६ क- संवेग की वृद्धि ख- संवेगी के कर्तव्य १०७ मोक्ष मार्ग १०८ श्रमण व संयत १०६-११२ सर्व-प्रत्याख्यान ११३-११६ चार मंगल, चार शरण, पाप-प्रत्याख्यान आराधक १२१-१२७ चिन्तन-मनन तप का आराधन आराधन ध्वज वास्तविक संथारे से सर्वथा कर्मक्षय आराधक की तीन भव से मुक्ति १३२-१३५ पताका हरण भाव जागरण १३७ क- चार प्रकार की आराधना ख- तीन प्रकार की आराधना १३८-१३६ क- उत्कृष्ट आराधना से उसी भव से मोक्ष ख- जघन्य आराधना से सात आठ भव से मोक्ष १२० १२६ आरा १४० क्षमा याचना १४१ धीर और अधीर की मृत्यु उपसंहार-सम्यक् आराधना का फल १४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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