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कल्पसूत्र-सूची
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सूत्र १०२ ७८ त्रिशला के चौदह स्वप्नों का फल-पुत्र लाभ ७६ युवा पुत्र का चक्रवर्ती या धर्मचक्रवर्ती होना ८०-८२ क- सिद्धार्थ की स्वप्न-फल धारणा
ख- स्वप्न-पाठकों को प्रीतिदान
गस्वप्न-पाठकों का विसर्जन ८३-८७ क- सिद्धार्थ का त्रिशला को स्वप्न पाठकों के कथन से अवगत
कराना ख- त्रिशला का स्वस्थान गमन ८८ तिर्यक जृम्भक देवों द्वारा राज्य कुल में निधान की वृद्धि ८६-६० सिद्धार्थ और त्रिशला का संकल्प,
वर्धमान नाम रखने का निश्चय माता की अनुकम्पा के लिये गर्भ में भ०महावीर का स्थिर होना
भ० महावीर के निश्चल होने से त्रिशला का चिन्तित होना ६३ क- भ० महावीर को त्रिशला के मनोगत भावों का अवधिज्ञान
से जानना ख- भ० महावीर द्वारा स्वशरीर का स्पंदन ६४ क- त्रिशला की प्रसन्नता ख- भ० महावीर का अभिग्रह
सिद्धार्थ द्वारा त्रिशला के दोहद की पूर्ति, त्रिशला का गर्भ
पोषण, संरक्षण १६ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भ० महावीर का जन्म ६७ जन्मोत्सव के लिये देव-देवियों का आगमन ६८ सिद्धार्थ के भवन में देवों द्वारा हिरण्य आदि की दिव्य वर्षा ६६-१०२ सिद्धार्थ द्वारा दस दिवस पर्यन्त पुत्र जन्मोत्सव
क- बन्दिमोचन ख- मान उन्मान की वृद्धि ग- शुल्क मुक्ति, कर मुक्ति
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