Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 913
________________ उ० ११ सूत्र ६२ ६ १० ११-६३ 057 ७१ ७२ ७३ ७४-७७ ७८ ७६ ६४-६५ ६६-६७ आश्चर्यान्वित करना 11 ६८-६६ स्वयं अथवा अन्य के साथ विपरीत आचरण करना ८० ८१ ८२ ८३ ८४-८५ .८७ ६० १ ६२ धर्म की निन्दा करना अधर्म की प्रशंसा करना अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से कार्य करवाना क- पैरों का परिकर्म करवाना ख- शरीर का संस्कार करवाना ग- कपड़े आदि से मस्तक ढकना स्वयं अथवा अन्य को भयभीत करना ८६ क ८८५ " प्रशंसा करना दुश्मन के राज्य में जाना आना दिवा भोजन की निन्दा करना रात्रि भोजन की प्रशंसा करना भोजन सम्बन्धी चतुर्भंगी रात्रि में आहारादि रखना रात्रि में रखे हुए – आहार का खाना पीना माँस आहार लेना नैवेद्य खाना स्वच्छन्द श्रमण श्रमणी की प्रशंसा करना स्वच्छन्द श्रमण श्रमणी को वंदना करना अयोग्य को दीक्षा देना अयोग्य से सेवा कराना ख- अयोग्य की सेवा करना, Jain Education International जिन कल्पी के साथ न रहना, चतुर्भंगी रात्रि में रखी हुई पिप्पली आदि का खाना बाल मरण मरना निशीथ-सूची For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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