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भगवती-सूची
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श०७ उ०७ प्र० ६२
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ওও
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७३ क- जीव के अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध
ख- अककर्श वेदनीय कर्म के बंध का हेतु
ग- इसी प्रकार चौवीस दण्डक में 'क' 'ख' के समान ७४ अशाता वेदनीय कर्म का अस्तित्व ७५ क- अशाता वेदनीय के बंध का हेतु ख- चौवीस दण्डक में अशाता वेदनीय के बंध का हेतु
काल चक्र इस अवसर्पिणी के दुषमदुषमा आरे का वर्णन छ8 आरे के मनुष्यों का आहार छ8 आरे के मनुष्यों की गति छ8 आरे के श्वापदों की गति छ? आरे के पक्षियों की गति
सप्तम अणगार उद्देशक ७७ क- संवृत अणगार की इरियावही क्रिया ख- इरियावही क्रिया के हेतु
काम-भोग ७८ काम रूपी है
काम सचित्त भी है, अचित्त भी है ८० काम जीव भी है, अजीव भी है
काम जीवों को होता है
काम दो प्रकार के हैं ८३-८६ भोग प्रश्नोत्तरांक ७८ से ८१ के समान ८७ भोग तीन प्रकार के हैं
८८ काम-भोग पांच प्रकार के हैं .८६ क- जीव कामी भी है, भोगी भी है
ख- जीवों के कामी भोगी होने का हेतु .६०-६२ चौवीस दण्डक में कामी-भोगी
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