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श०१८ उ०८ प्र०८८
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भगवती-सूची
६७ मद्रुक की अन्तिम साधना और निर्वाण
देवताओं का वैक्रेय सामर्थ्य विकुर्वितरूपों द्वारा देवता का युद्ध सामर्थ्य वैकेय शरीरों का एक जीव के साथ सम्बन्ध वैकेय शरीरों के अन्तरों का एक जीव के साथ सम्बन्ध शरीरों के मध्य अन्तरों का शस्त्रादि से छेदन संभव नहीं देवासुर संग्राम देवासुर संग्राम की संभावना
देवासुर संग्राम में शस्त्ररूप परिणत पदार्थ ७४ असुरों के विकुर्वित शस्त्र ७५-७६ देवताओं का गमन सामर्थ्य ७७-८० क- देवताओं के पुण्यकर्म का क्षय
ख- असुरकुमार-यावत्-अनुत्तर देवों के कर्मक्षय का भिन्न २ काल
अष्टम अनगार क्रिया उद्देशक ८१ क- राजगृह, भ० गौतम ख- भावित आत्मा अनगार की ऐपिथिकी क्रिया
अन्य तोर्थिकों ने भ० गौतम को एकान्त असंयत-यावत्-एकान्त-. बाल कहा अन्य तीथिकों ने एकान्त असंयत तथा बाल कहने का कारण बताया भ० गौतम ने एकान्त असंयत-यावत्-एकान्त बाल कहने का कारण बताया अन्य तीथिकों को यथार्थ उत्तर देने पर भ० महावीर ने भ० गौतम को साधुवाद दिया छद्मस्थ का परमाणुज्ञान-दो विकल्प द्विप्रदेशिक स्कंध-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तरांक ८७ के समान दो विकल्प
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