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वक्ष० ४ सूत्र १०८
ङ - मेरु चूलिका की ऊँचाई
च
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के मूल का और ऊपर का विष्कम्भ
छ
के मूल की और ऊपर की परिधि
ज - मेरु चूलिका के मध्य भाग में सिद्धायतन का वर्णन झ- चार दिशाओं में चार भवन का वर्णन
ञ - शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के प्राशादावतंसकों का वर्णन
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ङ -
१०७ क पण्डक वन में चार अभिषेक शिला
ख- पण्डुशिला का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य पर दो सिंहासन
ग
घ
के उत्तर के सिंहासन पर कच्छादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक पण्डुशिला के दक्षिण के सिंहासन पर कच्छादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक च - पण्डुकम्बल शिला का स्थान, आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य का एक सिंहासन पर भरत क्षेत्र के तीर्थकरों का अभिषेक
छ
11
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७११
21
ज- रक्तशिला का स्थान आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य पर दो सिंहासन
झ
ञ -
के दक्षिण सिंहासन पर पक्ष्मादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक ट- रक्तशिला के उत्तर के सिंहासन पर वक्षादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची
ठ- रक्तकंबलशिला का स्थान, आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य के एक सिंहासन पर ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों
ड
का अभिषेक
१०८ क मेरु पर्वत के तीन काण्ड
ख- प्रथम काण्ड चार प्रकार का
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