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औपपातिक-सूची
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सूत्र ३५-३७
ग- अर्धमागधी भाषा का सभी आर्य अनार्य भाषाओं में अनुवादित
होकर सुनाई देना घ- धर्मोपदेश के प्रमुख विषय
लोकालोक, जीवादि नव तत्व, उत्तम पुरुष, चार गति, माता, पिता व गुरुजनों की भक्ति, निर्वाण साधना, जगत की अठारह पाप प्रवृत्तियों का परिचय, समस्त पापमय प्रवृत्तियों से निवृत्ति अस्ति नास्तिवाद, शुभाशुभ कर्मफल निग्रंथ-प्रवचन की महिमा सर्वथा कर्मक्षय से मुक्ति, शुभकर्म अवशेष रहनेपर स्वर्ग नरकगति के चार कारण तिर्यंचगति के चार कारण मनुष्यगति के चार कारण देवगति के चार कारण कर्मबन्ध का कारण राग दो प्रकार का धर्म पंच महाव्रत और रात्रि भोजन विरति रूप-अणगार धर्म, अणगार धर्म के आराधक बारह प्रकार का आगार धर्म [पांच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाबत, संलेखना]
प्रागार धर्म के प्राराधक ३५ क- धर्म कथा की समाप्ति. कई व्यक्तियों द्वारा आगार धर्म की
प्रतिज्ञा करना ख- निग्रंथ प्रवचन की महिमा करना ग- धर्म, उपशम, विवेक और विरति का क्रम
कोणिक का स्वस्थान गमन ३७ सुभद्रा प्रमुख रानियों का स्वस्थान गमन
समवसरण वर्णन समाप्त
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