________________
औपपातिक-सूची
५४०
सूत्र४०-४१
४० क. अम्बड परिव्राजक की साधना
ख- अम्बड द्वारा कपिलपुर में वैक्रिय लब्धि का प्रदर्शन ग. अम्बड परिव्राजक को अवधिज्ञान घ- अम्बड की आगार धर्म आराधना ङ- अम्बड की दृढ़ सम्यक्त्व च- अम्बड का समाधिमरण. ब्रह्मलोक में उत्पत्ति. च्यवन. छ- महाविदेह के समृद्ध कुल में जन्म. लौकिक संस्कार-दृढ प्रतिज्ञ
नामकरण. कलाचार्य के समीप अध्ययन. बहत्तर कलाओं के नाम. अठारह देशी भाषाओं का ज्ञान. कलाचार्य को प्रीति दान. काम भोगों से विरक्ति. विरक्ति के लिये कमल की उपमा. स्थविरों से सम्यक्त्व की प्राप्ति. अणगार धर्म की दीक्षा- रत्नत्रय की आराधना केवल ज्ञान. [श्रमण साधना का संक्षिप्त वर्णन
अम्बड की आत्मा को निर्वाण पद की प्राप्ति. ४१ क- आचार्य प्रत्यनीक आदि श्रमणों किल्विषी देवों में उत्पत्ति
ख- किल्विषी देवों की स्थिति ग- परलोक में अनाराधक होना. घ. जातिस्मरण से देशविरत. संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की सहस्रार
कल्प पर्यन्त उत्पत्ति ङ- स्थिति. परलोक में आराधक होना च- आजीविक श्रमणों की अच्युत कल्प पर्यन्त उत्पत्ति. छ- अच्युत कल्प में देवों की स्थिति. परलोक में आराधक न होना ज- आत्मोत्कर्षक-अपनी बड़ाई करने वाले-यावत्-कौतुक करने
वाले श्रमणों की अच्युतकल्प पर्यन्त उत्पत्ति. झ- अच्युत कल्प में इन देवों की स्थिति. परलोक में अनाराधक.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org