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सूत्र ७३-८२
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राज प्र० सूची
७३ केशी कुमारश्रमण से धर्म श्रवण, व्रत धारणा, स्व स्थान गमन
के लिए उद्यत होना. ७४ क- केशी कमारश्रमण द्वारा तीन प्रकार के आचार्यों का तथा उनके
साथ किये जाने वाले विनयों का प्रतिपादन स- अविनय के लिये क्षमायाचना तथा प्रदेशी का स्वस्थान गमन ७५ क- अंत:पुर व परिवार के साथ राजा प्रदेशी का आना । ख- केशी कुमारश्रमण द्वारा वन खण्ड, नृत्य शाला, इक्षुवाड़ा और
खलिहान के रूपक से सदा रमणीय रहने का उपदेश देना ७६ सात हजार ग्रामों से प्राप्त होने वाले राज्यधन के चार
विभाग करना. ७७ क- प्रदेशी को मारने के लिये सूर्यकान्ता का सूर्यकान्त कुमार से आग्रह
ख- सूर्यकान्त कुमार का मौन विरोध
ग- सूर्यकान्ता द्वारा विष प्रयोग, प्रदेशी राजा के शरीर में उनवेदना ७८ क- पौषध शाला में राजा प्रदेशी का समाधि मरण ख- सौधर्म कल्प के सूर्याभ विमान में उत्पत्ति
सूर्याभ देव की स्थिति, च्यवन के पश्चात महाविदेह में उत्पत्ति होगी. पांच धायों से पालन, नाना देशों की दासियों से संवर्धन शुभ मुहूर्त में कलाचार्य के समीप गमन. बहत्तर कलाओं का अध्ययन करेगा. माता पिता की और से विवाह की तैयारियां होगी, दृढ प्रतिज्ञ का अलिप्त जीवन, स्थविरों के समीप प्रव्रज्या ग्रहण करके द्वादशांग का अध्ययन करेगा. अनुत्तर धर्म आराधना से अनुत्तर
केवल ज्ञान दर्शन की प्राप्ति करके सिद्धपद की प्राप्ति करेगा. ८२
उपसंहार-जिन भगवान् को, श्रुत देवता को, प्रज्ञप्ति भगवति को और भ० पार्श्वनाथ को नमस्कार
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