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• भगवती-सूची
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श०१० उ०५ प्र०५० - ग- शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है ३६ क- ईशानेन्द्र के प्रायस्त्रिशक देव
ख- जम्बूद्वीप, भरत, चम्पानगरी, तेतीस श्रमणोपासक आराधक ___अवस्था में मरकर त्रायस्त्रिशक देव हुए ग- ईशानेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है घ- अच्युतेन्द्र पर्यन्त इसी प्रकार समझें
पंचम देव उद्देशक ३७ राजगृह, गुणशील चैत्य, भ० महावीर और स्थविर ३८ क- चमरेन्द्र की पांच अग्रमहीषियों के नाम
ख- मर्यादा का हेतू माणवक चैत्यस्तंभ
ग- जिन अस्थियों का सम्मान ४० क- चमरेन्द्र के सोमलोकपाल की चार अग्रमहीषियों के नाम
ग- चार हजार देवियों का एक त्रुटिक वर्ग कहा जाता है घ- सोमा राजधानी, सोम लोकपाल की मैथुन मर्यादा. मर्यादा का हेतु
पूर्ववत् शेष लोकपालों का वर्णन-सोम लोकपाल के समान वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहीषियों के नाम-परिवार पूर्ववत् बलेन्द्र के चार लोकपालों का वर्णन धरणेन्द्र की छह अग्रमहीषियों के नाम धरणेन्द्र के कालवाल लोकपाल की चार अग्र महीषियों के नाम भूतानेन्द्र की छह अग्रमहीषियों के नाम भूतानेन्द्र के नागवित्त लोकपाल की चार अग्रमहीषियों के नाम शेष वर्णन-धरणेन्द्र के लोकपालों के समान कालेन्द्र की अग्रमहीषियों के नाम सुरूपेन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम पूर्णभद्र की चार अग्रमहीषियों के नाम
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