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श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गच्छों का सामान्य परिचय (प्रतिलेखनकाल वि०सं० १२२६/ईस्वी सन् ११६०) और पद्मप्रभचरित (रचनाकाल वि०सं० ११९८) की प्रशस्ति ही मिलती है । पद्मप्रभचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह गच्छ विद्याधरगच्छ की एक शाखा थी।
इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते हैं जो वि०सं० १२१३ से वि०सं० १४२३ तक के हैं । ग्रन्थ प्रशस्तियों और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है -
बालचन्द्रसूरि
गुणभद्रसूरि (वि०सं० १२२६ की नंदीदुर्गपदवृत्ति में उल्लिखित)
सर्वाणंदसूरि (पार्श्वनाथचरित- [अनुपलब्ध] के रचनाकार)
धर्मघोषसूरि
देवसूरि (वि०सं० १२५४/ईस्वी सन् ११९८ में पद्मप्रभचरित के रचनाकार)
हरिभद्रसूरि (वि०सं० १२९६/ईस्वी सन् १२४० प्रतिमालेख - घोघा)
हरिप्रभसूरि
चन्द्रसूरि
विबुधप्रभसूरि (वि०सं० १३९२ प्रतिमालेख)
ललितप्रभसूरि (वि०सं० १४२३/ईस्वी सन् १३६७ प्रतिमालेख)
जीरापल्लीगच्छ-राजस्थान प्रान्त के अर्बुदमण्डल के अन्तर्गत जीरावला नामक प्रसिद्ध स्थान है। यहाँ पार्श्वनाथ का एक महिम्न जिनालय विद्यमान
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