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खंडिल गच्छ
२.
1
हरिश्चन्द्रराजारास के रचनाकार)
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वि० सं० की ११ वीं शताब्दी के प्रथम चरण में यह गच्छ अस्तित्व में आया और वि० सं० की १७ वीं शती के अन्त तक इसका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा, तथापि इस समय तक इसका पूर्व गौरव समाप्त हो चुका था । वर्तमान में इस गच्छ का अस्तित्व इतिहास के पृष्ठों तक सीमित है ।
३.
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संदर्भ सूची :
१.
'सकलतीर्थस्तोत्र' C.D. Dalal, Descriptive Catalogue of Manuscripts at Jaina Bhandar's at Pattan, G.O.S. No. 76, P. 156. मेदार्येण महर्षिभिर्विहरता तेपे तपो दुश्वरं ।
श्रीखंडिल्लकपत्तनान्ति करणाभ्यर्द्धिप्रभावात्तदा ।
४.
७.
(वि० सं० १६६४) इस लेख में
आचार्य का नाम नहीं मिलता है।
1
कनकसुन्दर (वि० सं० १६९७ में
३९५
मुनि जिनविजय, संपा० खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४२, मुम्बई १९५६ ई० पृष्ठ ९६ ।
प्रोग्रेस रिपोर्ट, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इन्डिया, वेस्टर्न सर्किल, पृष्ठ
५६ ।
५- ६. मुनि जिनविजय, संपा० प्रभावकचरित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १३, मुम्बई १९४० ई०
H.D. Velankar, Ed. Jinaratnakosh, Poona 1944 A.D. PP. 86.
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जुगल किशोर मुख्तार, संपा० जैनग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, वीरसेवा मंदिर ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १२, दिल्ली १९५४ ई०, पृष्ठ ३-४ ।
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