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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास धनेश्वरसूरि
भुवनचन्द्रसूरि
देवभद्रगणि
- चैत्रगच्छ की परम्परा जारी
जगच्चचन्द्रसूरि (वि० सं० १२८५ में तपागच्छ के प्रवर्तक)
चैत्रगच्छ का उल्लेख करनेवाला सबसे प्राचीन साक्ष्य है वि०सं० १२२५ आषाढ़ वदि ९ को प्रतिष्ठापित चन्द्रप्रभ की प्रतिमा के परिकर पर उत्कीर्ण लेख, जो खंडित रूप में प्राचीन देवास राज्य के रिंगणोद (बिंबणोद) नामक कस्बे में खुदाई में प्राप्त हुआ है। सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व. आचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी ने इस लेख की वाचना दी है जो इस प्रकार है :
संवत् १२२५ वर्ष आषाढ़ वदि ९ रवौ श्रीमालीय सा० लोहडागंज सा० वच्च हीरू पुत्रेण पाल्हा प्रावासा बोहित्थेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचैत्रकगच्छे श्रीगुणचन्द्रसूरिशिष्यैः श्रीरविप्रभसूरिभिः । भद्रमस्तु संघस्य ।
यदि सूरिजी की उक्त वाचना को सही मानें तो इसे चैत्रगच्छ का अब तक उपलब्ध सबसे प्राचीन साक्ष्य माना जा सकता है ।
धनेश्वरसूरि और उनके शिष्य भुवनचन्द्रसूरि तथा उक्त परिकर लेख में उल्लिखित गुणचन्द्रसूरि और उनके शिष्य रविप्रभसूरि के बीच किस
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