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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास यद्यपि उक्त लेख में जालिहरगच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं है, फिर भी इस गच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य होने के कारण यह महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है ।
इस गच्छ से सम्बद्ध द्वितीय लेख वि० सं० १२९६ / ई० सन् १२४० का है, जो भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में जालिहरगच्छीय देवसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में उल्लेख है ।
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देवसूरि
| हरिभद्रसूरि
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की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक ]
जालिहरगच्छ से सम्बद्ध तृतीय लेख वि० सं० १३३१ / ई० सन् १२७५ का है । यह लेख सलखणपुर स्थित जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में हरिप्रभसूरि का उल्लेख है ।
आचार्य हरिप्रभसूरि द्वारा वि० सं० १३४९ / ई० सन् १२९३ और वि० सं० १३५९ / ई० सन् १३०३ में प्रतिष्ठापित एक - एक जिनप्रतिमायें मिली हैं, जो क्रमश: सलखणपुर " ओर घोघा के जिनालयों में आज संरक्षित है । वि० सं० १३४९ / ई० सन् १२९३ के लेख में प्रतिष्ठापक आचार्य हरिप्रभसूरि की गुरु- परम्परा दी गयी है, जो इस प्रकार है -
देवसूरि
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हरिभद्रसूरि
[वि० सं० १२९६ / ई० सन् १२४० में नेमिनाथ
I हरिप्रभसूरि
वि० सं० १३४९ / ई० सन
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