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थारापद्रगच्छ
२- जीवविचारप्रकरण
३- चैत्यवन्दनमहाभाष्य
रचनाकार)
रामसेन के उपरकथित लेख में उल्लिखित पूर्णभद्रसूरि तथा सटीकबृहत्संग्रहणीप्रकरण के कर्ता शालिभद्रसूरि के गुरु पूर्णभद्रसूरि सम्भवत: एक ही व्यक्ति हैं। रामसेन के उपर्युक्त लेख की मिति वि० सं० १११० तथा बृ० सं० प्र० की रचनामिति वि० सं० ११३९ के बीच २८ वर्षों का ही अन्तर है । इसमें भी यह संभावना बलवत्तर होती है। ठीक इसी तरह वि० सं० ११२२ और वि० सं० ११२५ में क्रमश: षडावश्यकसूत्रवृत्ति और काव्यालंकारटिप्पन रचने वाले नमिसाधु के गुरु शालिभद्रसूरि भी उपर्युक्त बृ० सं० प्र० के कर्त्ता शालिभद्रसूरि से अभिन्न जान पड़ते हैं ।
इसी गच्छ में वादिवेताल शांतिसूरि नामक एक प्रभावक एवं विद्वान् आचार्य हुए हैं। इनकी पांच कृतियां उपलब्ध हुई हैं, यथा :
१ - उत्तराध्ययनसूत्र पर लिखी गयी पाइयटीका अपरनाम शिष्यहिताटीका
४ - बृहद्शान्तिस्तव
५ - जिनस्नात्रविधि
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बृहत्संग्रहणीप्रकरण के
इनमें पाइयटीका और बृहद्शान्तिस्तव अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । पाइयटीका की प्रशस्ति में टीकाकार ने थारापद्रगच्छ को चन्द्रकुल से समुद्भूत माना है, किन्तु रचना की तिथि एवं अपनी गुरु- परम्परा के बारे में वे मौन रहे हैं ।
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अपनी अन्य कृतियों की प्रशस्तियों में भी शांतिसूरि ने अपनी गुरुपरम्परा एवं रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं किया है ।
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