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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख में उल्लिखित थारापद्रगच्छीय सर्वदेवसूरि संभवतः यही सर्वदेवसूरि हो
सकते हैं) विजयसिंहसूरि (वि० सं० १३१५/ ई० सन्
१२५९) प्रतिमालेख सर्वदेवसूरि (वि० सं० १४५० / ई० सन्
१३९४) प्रतिमालेख (विजयसिंहसूरि) (प्रतिमालेख अनुपलब्ध)
शांतिसूरि
(वि० सं० १४७९-१४८३ / ई० सन् १४२३-१४२७) प्रतिमालेख (प्रतिमालेख अनुपलब्ध)
(सर्वदेवसूरि)
विजयसिंहसूरि (वि० सं० १५०१-१५१६ /
ई० सन् १४४५-१४६०)
प्रतिमालेख शांतिसार
(वि० सं० १५२७-१५३२ / (वि० स० ११ ई० सन् १४७१-१४७६)
प्रतिमालेख रामसेन के वि० सं० १०८४/ ई० सन् १०२८ के परिकरलेख में थारापद्रगच्छ के आचार्यों की जो गुरु-परम्परा मिलती है, उसमें सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि का भी नाम मिलता है। समसामयिकता और
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