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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
धर्मघोषसूरि
I यशोभद्रसूरि
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रविप्रभसूरि ( धर्मघोषसूरिस्तुति के कर्त्ता )
उदयप्रभसूरि ( व्याख्याकार)
३ - विचारसारविवरण - ९०० गाथाओं की इस रचना के कर्त्ता धर्मघोषगच्छीय प्रद्युम्नसूरि हैं। रचना के अन्त में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है
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धर्मघोषसूरि
देवप्रभसूरि
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प्रद्युम्नसूरि ( रचनाकार)
४- कल्पसूत्रटिप्पनक' - यह धर्मघोषगच्छीय पृथ्वीचन्द्रसूरि की रचना है । रचना के अन्त में रचनाकार ने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी गुर्वावली का उल्लेख तो किया है, परन्तु ग्रन्थ के रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं किया है । इनका काल वि० सं० की १३ वीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आस-पास माना जा सकता है । कल्पसूत्रटिप्पनक की वि० सं० १३८४ की एक प्रति पाटन के ग्रन्थ भंडार में संग्रहीत है । इसकी प्रशस्ति में ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित अपनी गुरु- परम्परा इस प्रकार है
शीलभद्रसूरि
धर्मघोषसूरि
T यशोभद्रसूरि
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