Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 666
________________ नाणकीयगच्छ ६२५ प्रधान कार्य था। विधिमार्गियों द्वारा चैत्यवास के प्रबल विरोध के बाद भी दीर्घकाल तक चैत्यवासियों का अस्तित्व बना रहना समाज पर इनके व्यापक प्रभाव का परिचायक है । नाणकीयगच्छ से सम्बद्ध सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य है वि० सं० १२७२ में लिखी गयी 'बृहत्संग्रहणीपुस्तिका' की दाताप्रशस्ति, जिसमें गोसा नामक श्रावक की बहन पवइणी द्वारा नाणकीय गच्छ के जयदेव उपाध्याय को उक्त पुस्तिका की प्रतिलिपि अध्ययनार्थ भेंट में देने का उल्लेख है । शांतिसूरि, सिद्धसेनसूरि, धनेश्वरसूरि और महेन्द्रसूरि इन चार परम्परागत आचार्यों का इसमें नामोल्लेख भी नहीं है । नाणकीय गच्छ का सबसे प्राचीन साहित्यिक साक्ष्य होने के कारण इस प्रशस्ति का विशिष्ट महत्त्व है । २ इस गच्छ से सम्बद्ध दूसरा और अब तक उपलब्ध अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य है, ‘षट्कर्म अवचूरि' के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति, जो वि० सं० १५९२ में पूर्ण की गयी है । लगभग १० पंक्तियों की इस प्रशस्ति में इस गच्छ के परम्परागत ४ आचार्यों का नाम प्राप्त होता है, इसी लिये इस प्रशस्ति को विशेष महत्त्वर्ण माना जा सकता है। नाणाकीय गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित प्रतिमा लेखों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है - - 'संवत ११०२ वीरेण कारिता श्रीमन्नाणकीय गच्छे' ३ जैसा कि हम पहेले देख चुके हैं, नाणकीय गच्छ का उल्लेख करने वाला यह सबसे प्राचीन प्रतिमा लेख है, जो पींडवाड़ा स्थित जैनमंदिर में संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । इस गच्छ से सम्बन्धित दूसरा लेख वि० सं० ११३३ का है, जो पींडवाड़ा के उक्त जिनालय में एक खंडित प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है 1 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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