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पुस्तक प्रशस्तियाँ
पाठकगुणरत्न
जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
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१- कालकाचार्यकथा
इस रचना की वि० सं० १३४४ की एक प्रति पाटन के जैन ग्रन्थ भंडार में सुरक्षित है। इसे धर्मघोषगच्छीय आचार्य अमरप्रभसूरि के उपदेश से सोमसिंह नामक श्रावक ने लिपिबद्ध कराया था। इसकी प्रशस्ति में अमरप्रभसूरि की गुरु- परम्परा का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है
शीलभद्रसूरि
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धर्मघोषसूरि
पुण्यराजसूरि
आनन्दसूरि
अमरप्रभसूरि
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(वि० सं० १३४४ में इनके उपदेश से कलकाचार्यकथा की प्रतिलिपि तैयार की गयी)
२ - लघुक्षेत्रसमासवृत्ति १४
यह रत्नशेखरसूरि की रचना है । इसकी वि० सं० १५५० में धर्मघोषगच्छीय मुनि नन्दिवर्धनसूरि के शिष्य पाठक गुणरत्न द्वारा लिपिबद्ध की गयी एक प्रति मुनिश्रीपुण्यविजय जी के संग्रह में सुरक्षित है ।
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