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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास
२. शिलालेख महामात्य वस्तुपाल द्वारा शत्रुञ्जय महातीर्थ पर उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख की प्राचीन नकल में अन्य गच्छों के आचार्यों के साथ साथ थारापद्रगच्छ के आचार्य सर्वदेवसूरि और पूर्णभद्रसूरि का भी उल्लेख है। लेख के मूलपाठ के लिये द्रष्टव्य - U. P. Shah - “A Forgotten Chapter in The History of Shwetambara Jaina Church” JASB Vol. 30, Part I, 1955, Pp - 100- 113. वि० सं० १३३३ का शिलालेख, जिसमें चाहमान नरेश चाचिगदेव के राज्य में स्थित महावीर जिनालय को थारापद्रगच्छ के आचार्य पूर्णभद्रसूरि के उपदेश से दान देने का उल्लेख है। द्रष्टव्य- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, सं० मुनि जिनविजय, लेखांक ४०२.
घोघाकी जैन प्रतिमा निधि की दो जिन प्रतिमायें इस गच्छ से सम्बन्ध हैं । इन पर वि० सं० १२५९ और वि० सं० १५१४ के लेख उत्कीर्ण हैं, किन्तु इनके मूलपाठ हमें प्राप्त नहीं हो सके हैं, अतः इनके सम्बन्ध में विशेष विवरण दे पाना कठिन है।
संदर्भ- मधुसुदन ढांकी और हरिशंकर शास्त्री, “घोघानो जैन प्रतिमा निधि", फार्बस गुजराती सभा त्रैमासिक, जनवरी-मार्च अंक, ई० स० १९६५.
संदर्भ सूची :१. अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, अहमदाबाद
१९५३, पृ० ३९. २. N.C. Mehta, “A Medieval Jaina Image of Ajitnath", Indian
Antiquary, Vol LVI, 1927, Pp. 72-74. ३. bid. Pp. 73-74.
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