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थारापद्रगच्छ
___५२७ जिनालय में उपर्युक्त प्रतिमा
के प्रतिष्ठापक) थरापद्रगच्छ से सम्बद्ध कालक्रम में द्वितीय प्रमाण है वि० सं० १११०/ ई० स० १०५४ में आचार्य पूर्णभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख । वर्तमान में यह प्रतिमा अहमदाबाद में झवेरीवाड़ के एक जिनालय में है। मेहता ने लेख की वाचना इस प्रकार
की है :
थारापद्रपुरीयगच्छगगनोद्योतक भास्वानभूत् सूरिः सागरसीम विश्रुतगुणः श्री शालिभद्राभिधः । तच्छिष्य समजन्यज्ञानवृजिनासंगः सतामग्रणीः सूरिः सर्वगुणोत्करैकवसतिः श्री पूर्णभद्राह्वयः ॥ तस्य श्री शालिभद्रप्रभु रत्नमकृतोच्चैः पदपुण्यमूर्तिः विद्वच्चूडामणेः स्वेशसि (शि) विस (श) दयशो व्यानशेवस्व विश्वम् । स्थाने तस्यापि सूरिः समजनि भुवनेऽनन्यसाधारणानां लीलागारं गुणानामनुपम महिमा पूर्णभद्राभिधानः ॥ श्री शालिसूरिनिजगुरुपुण्यार्थमिदं विधापित तेन । अजितजिनबिंबमतुलं नंदतु रघुसेन जिनभु (भ) वने ॥ संवत १११० चैत्र सुदि १३
इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य पूर्णभद्रसूरि का शालिभद्रसूरि के पट्टधर के रूप में उल्लेख है। लेख से ज्ञात होता है की यह प्रतिमा भी रामसेन स्थित राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में ही स्थापित की गयी थी। इस लेख के अनुसार गुर्वावली इस प्रकार है :
शालिभद्रसूरि
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