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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास पूर्णभद्रसूरि (वि० सं० १११० / ई० स०
१०५४ में राजा रघुसेन द्वारा निर्मित जिनालय में
प्रतिमा प्रतिष्ठापक)
साहित्य स्त्रोतों में देखा जाये तो थारापद्रगच्छ के नमिसाधु द्वारा
प्रणीत दो कृतियाँ मिली हैं :
१. षडावश्यकसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १९२२ / ई० स० १०६५)
२. काव्यालंकारटिप्पन' (रचनाकाल वि० सं० ११२५ / ई० स०
१०६८)
उक्त रचनाओं की प्रशस्तियों में ग्रन्थकार ने स्वयं को थारापद्रगच्छीय शालिभद्रसूरि का शिष्य बतलाया है ।
शालिभद्रसूरि
नमिसाधु
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के प्रणेता)
इसी गच्छ के शालिभद्रसूरि अभिधानधारक एक और आचार्य ने वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक बृहत्संग्रहणीप्रकरण की रचना की । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुर्वावली इस प्रकार दी है -
शीलभद्रसूरि
I
पूर्णभद्रसूरि
(षडावश्यकसूत्रवृत्ति एवं काव्यालंकारटिप्पन
1 शालिभद्रसूरि
(वि० सं० ११३९ / ई० स० १०८३ में सटीक
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