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जालिहरगच्छ
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चन्द्रसूरि
हरिप्रभसूरि [वि० सं० १३३९-५९]
प्रतिमालेख
विबुधप्रभसूरि [वि० सं० १३९३ प्रतिमालेख]
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ललितप्रभसूरि [वि० सं० १४२३/ ई० सन्
१३६७] प्रतिमा लेख उक्त साक्ष्यों के आधार पर विक्रम की तेरहवीं शती के प्रारम्भ से १५वीं शती के प्रथमचरण तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है। जहां अन्य गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्रचुरता से उपलब्ध होते हैं, वहीं इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के मुनिजनों
और श्रावकों की संख्या अल्प थी। १५वीं शती के द्वितीय चरण से इस गच्छ से सम्बद्ध कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है, अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के मुनिजन और उपासक किन्हीं अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। संदर्भ सूची १. संवत् १२२६ वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि ३ सोमऽद्येह मंडलीवास्तव्य श्रीजाल्योधरगच्छे
मोढ़वंशे श्रावकश्रीसदेवसुतेन ले० पल्हणेन लिखिता। लिखापिता च गुणभद्रसूरिभिः ॥
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