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जालिहरगच्छ
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२. पद्मप्रभचरित' जालिहरगच्छीय देवप्रभसूरि ने वि० सं० १२५४/ ई० सन् १९९८ में प्राकृत भाषा में इस महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की । कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत वर्णन किया है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस प्रशस्ति में उल्लिखित गुरु-परम्परा इस प्रकार है -
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बालचन्द्रसूरि
1
गुणभद्रसूरि 1
सर्वाणंदसूर 1
धर्मघोषसूरि
| देवसूरि
नन्दिपददुर्गवृत्ति की प्रतिलिपि की गयी ]
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५०५
के रचनाकार ]
अभिलेखीय साक्ष्य जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा गया है, जालिहरगच्छ से सम्बद्ध ८ प्रतिमालेख मिलते हैं। इनमें से सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० १२१३ / ई० सन् ११५७ का है । लेख इस प्रकार है -
सं० [०] १२१३ वैशाख वदि ५ जोराउद्रग्रामे श्रीवीसिवदेव्या श्रीजाल्योधरगच्छे ॥
प्रतिष्ठास्थान - जैन मंदिर, अजारी
मुनि जयन्तविजय – अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४०८ ।
[वि० सं० १२५४ / ई० सन् ११९८ में पद्मप्रभचरित
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