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चैत्रगच्छ
४९९ स्वये (श्रे) यस (से) श्रीवासुपूज्यबिंबं क० (का०) श्री चे (च) गछे (च्छे) श्रीज्ञानदेवसूरिभिः प्रतिष्ठित (ष्ठितं) त... न्य. गाम....
वासुपूज्य की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठा स्थान - आदिनाथ जिनालय, जामनगर
॥ संवत् १५३० वर्षे पौष वदि ६ रवौ श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० गेला भा० पूरी सू० रत्नाकेन भा० रूपिणि द्वि० भा० कीरूसहितेन स्वपितृपूर्वजन् (नि) मितं (तं) आत्मश्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० चैत्रगच्छे सलषणपुरा भ० श्रीज्ञानदेवसूरिभिः ॥
वासुपूज्य की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - आदिनाथ जिनालय, जामनगर
चैत्रगच्छीय धारणपद्रीय (थारापद्रीय) शाखा के लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य ज्ञानदेवसूरि (वि०सं० १५२७-१५३०, प्रतिमालेख) का उल्लेख मिलता है। ये दोनों ज्ञानदेवसूरि एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग, इस सम्बन्ध में निश्चयात्मक रूप से कुछ भी कह पाना कठिन है।
६-७. कम्बोइयाशाखा और अष्टापदशाखा - राजगच्छपट्टावली (रचनाकार, अज्ञात, रचनाकाल वि० सं० की १६वीं शती का अंतिम चरण) में चैत्रगच्छ की इन दो शाखाओं का उल्लेख है, परन्तु किन्हीं अन्य साक्ष्यों से उक्त शाखाओं के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती।
८. शार्दूलशाखा - चैत्रगच्छ की इस शाखा का एकमात्र लेख वि० सं० १६८६/ ई० सन्. १६३० का है। इस लेख में राजगच्छ के एक अन्वय के रूप में चैत्रगच्छ की उक्त शाखा का उल्लेख है । इस शाखा के सम्बन्ध में अन्यत्र किसी भी प्रकार का कोई विवरण अनुपलब्ध है।
९. देवशाखा - जैसा कि पूर्व में हम देख चुके हैं, दशवैकालिक सूत्र की वि० सं० १७६८/ ई. सन् १७१२ की प्रतिलिपित प्रशस्ति में चैत्रगच्छ की देवशाखा का उल्लेख है। इस शाखा के प्रवर्तक कौन थे,
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