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चैत्रगच्छ
५०१ अगरचन्द नाहटा, "जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश", यतीन्द्रसूरिअभिनन्दनग्रन्थ (आहोर १९५८ ई०) पृष्ठ १४७ पर श्री नाहटा द्वारा उद्धृत बुद्धिसागरसूरि का मत । मुनि कान्तिसागर, शत्रुञ्जयवैभव (कुशल संस्थान, जयपुर
१९९० ई०) पृष्ठ २३९. २-३. तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि कृत श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण की प्रशस्ति, Muni
Punyavijaya - Catalogue of Palm Leaf Manuscripts in the Shantinatha Jain Bhadara, Cambay (G.O.S. No. 149, Part II, Baroda 1966 A.D.) Pp. 263-265. तपागच्छीय क्षेमकीर्तिसूरि कृत बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि० सं० १३२२ / ई० सन् १२५६) की प्रशस्ति C. D. Dalal - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan, (G.O.S. No. LXXVI, Baroda) 1937 A.D. Pp. 354-356. तपागच्छीय विभिन्न पट्टावलियों के संदर्भ में द्रष्टव्य त्रिपुटी महाराज संपा० पट्टावलीसमुच्चय भाग १-२ (चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क २२ एवं ४४, अहमदाबाद १९३३-१९५० ई०) मुनि जिनविजय - संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ५३, बम्बई १९६१ ई०; मुनि कल्याणविजय गणि. संपा० पट्टावलीपरागसंग्रह, (कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालोर १९६६ ई०) शिवप्रसाद, तपागच्छ का इतिहास, वाराणसी २००० ई०, पृष्ठ ४२-४३. यतीन्द्रविहारदिग्दर्शन, भाग ४, लेखांक ४९, पृ० १४६. अगरचन्द नाहटा, "मेवाड़ में चित्रित कल्पसूत्र की एक विशिष्ट प्रति" श्रमण, वर्ष २८, अंक ८, जून १९७७ ई०, पृ० २४-२६. कस्तूरचंद कासलीवाल, संपा० प्रशस्तिसंग्रह (आमेर शास्त्र भंडार में संरक्षित ग्रन्थों की ग्रन्थ तथा लेखक प्रशस्तियों का संग्रह), जयपुर १९५० ई०, प्रशस्ति क्रमांक ५०, पृष्ठ ६४. A. P. Shah - Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Muni Shri Punyavijayaji's, Collection (L.D. Series No. 2,
Ahmedabad - 1963 A.D.) Part I, Pp. 131, No. 2554. ७. bid, Part I, P. 93, No. 1464.
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