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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ८. Ibid, Part I, P. 83, No. 1018.
घाघसा चित्तौड़ के निकट एक ग्राम है । इस ग्राम में एक प्राचीन बावडी में यह शिलालेख लगा हुआ था। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने इसे वहां से हटाकर अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित रखवा दिया है। इस लेख में २८ पंक्तियां और ३३ श्लोक हैं । यह लेख वि० सं० १३२२ कार्तिक सुदि १ रविवार का है। गौरीशंकर ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० २७०, मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह संदर्भ PK. Gode, Ibid, pp. 12 तथा गोपीनाथ शर्मा - राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, पृ० १०८ के आधार पर दिया गया है। चीरवा नामक ग्राम उदयपुर से ८ मील उत्तर में स्थित है। यहां के एक विष्णु मंदिर में यह शिलालेख लगा हुआ है । एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द १२, पृ० २८५२९२ पर इस लेख का मूल पाठ प्रकाशित है। इस लेख में कुल ५१ श्लोक और ३६ पंक्तियां हैं । चैत्रगच्छीय आचार्यों की नामावली से सम्बद्ध पंक्तियां इस प्रकार हैं : श्रीचैत्रगच्छगगने तारकबुधकविकलावतां निलये। श्रीभद्रेश्वरसूरिर्गुरुरुट्गान्निष्कवर्णांगः ॥ ४५ ॥ श्रीदेवभद्रसूरिस्तदनू श्रीसिंहसेनसूरिरथ । अजनि जिनेश्वरसूरिस्तच्चिष्यो विजयसिंहसूरिश्च ॥ ४६ ॥ श्रीभुवनचंद्रसूरिस्तत्पट्टेभूद्भूतदंभमलः । श्रीरत्नप्रभसूरिस्तम्यः विनेयोस्ति मुनिरत्नं ॥ ४७ ॥ त्रिपुटी महाराज - जैनतीर्थोनो इतिहास (श्री चारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, अहमदाबाद
११४९ ई०) पृष्ठ ३८५ और आगे. १२. पूरनचन्द्र नाहर, संपा० जैनलेखसंग्रह, भाग २, कलकत्ता १९२७ ई०, लेखांक
१९४९ तथा विजयधर्मसूरि - संग्राहक - प्राचीनलेखसंग्रह, (यशोविजय जैन
ग्रन्थमाला, भावनगर १९२९ ईस्वी) लेखांक ३९. १३. गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, पृ० ११४-१५.
गौरीशंकर हीराचंद ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० १७५-१७६. उद्धृत, गोपीनाथ शर्मा, पूर्वोक्त, पृष्ठ ११४.
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